Maharashtra Assembly Election 2019, Narendra Modi aur Sharad Pawar ki Dosti: राजनीति में कब कोई इंसान आपका दोस्त बन जाए और कब दुश्मन बन जाए, इसका कोई ठिकाना नहीं है. महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. चुनाव से पहले महाराष्ट्र की प्रमुख पार्टी एनसीपी चीफ शरद पवार का नाम कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में आ रहा है. कभी राजनीतिक तौर पर दोस्त रहे शरद पवार और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच दुश्मनी तो नहीं बढ़ रही है. क्या पीएम मोदी शरद पवार को पी चिदंबरम की तरह जेल में तो नहीं भिजवाना चाहते हैं.
नई दिल्ली. केंद्र की मोदी सरकार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के चीफ और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार को भी चिदंबरम की तरह जेल भेजने की तैयारी तो नहीं कर रही है? यह सवाल सियासी गलियारों में तैरने लगी है, लेकिन साथ में एक सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शरद पवार को अपना दोस्त भी तो मानते हैं. तो फिर केंद्र सरकार पवार के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों कर रही है?
याद कीजिए फरवरी 2015 का वो वक्त जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एनसीपी प्रमुख शरद पवार से नजदीकियां बढ़ने पर एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने मोदी का कार्टून बनाकर उनकी तीखी आलोचना की थी. तब पीएम मोदी महाराष्ट्र के बारामती में एक कार्यक्रम के दौरान शरद पवार के तारीफों के पुल बांधे थे और उनके साथ दिन का भोजन भी किया था. मीडिया में दोस्ती की नुमाइश वाली कई तस्वीरें तब सामने आई थीं. इतना ही नहीं, तब मोदी जी ने कहा था कि पवार साहब यूपीए सरकार के दौरान गुजरात सरकार की काफी मदद करते थे.
शरद पवार को लेकर पीएम मोदी के इस बदले रुख से खफा राज ठाकरे ने मोदी और पवार का कार्टून बनाकर एक-दूसरे को वेलेंटाइन दोस्त बताया था. इससे पहले शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने महाराष्ट्र में भाजपा को बिना शर्त समर्थन देने का भी ऐलान किया था जिसके बाद शिवसेना ने काफी हंगामा किया था. तो ऐसी थी मोदी-पवार की दोस्ती. लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि एक झटके में दोस्ती के सारे उसूलों को धता बताते हुए घोटाले का मुकदमा दर्ज करा दिया.
दरअसल एक कहावत काफी प्रचलित है कि राजनीति में स्थायी रूप से न कोई किसी का दोस्त होता है और न ही कोई किसी का दुश्मन. यह सारा खेल शतरंज की बिसात पर नफा और नुकसान का है. सारा खेल लेनदेन का है. सारा खेल अवसरों को भुनाने का है. मालूम हो कि महाराष्ट्र में अगले महीने की 21 तारीख को विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है. इस चुनाव में भाजपा और शिवसेना को पटखनी देने के लिए शरद पवार की एनसीपी ने कांग्रेस पार्टी से हाथ मिलाया है. शरद पवार पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि कांग्रेस और एनसीपी 125-125 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, जबकि 38 सीटों पर सहयोगी पार्टियां लड़ेंगी.
बस यही बात मोदी जी को नागवार गुजरी. कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने वाले मोदी और शाह को शरद पवार का यह फैसला कुछ रास नहीं आया और फिर बिना देरी किए उनके पीछे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को लगा दिया. अब ईडी ने चाचा-भतीजा (शरद पवार और अजीत पवार) का जो हाल किया वह किसी से छिपा नहीं है. प्रवर्तन निदेशालय ने 24 सितंबर को महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक में हुए एक घोटाले के मामले में शरद पवार, अजीत पवार समेत बैंक के 70 पूर्व अधिकारियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है.
यह मामला करीब एक दशक पुराना है. इसके पीछे की कहानी यह है कि शरद पवार, जयंत पाटिल समेत बैंक के अन्य निदेशकों ने कथित तौर पर चीनी मिलों को कम ब्याज दरों पर कर्ज दिया था और फिर डिफॉल्टर की संपत्तियों को सस्ती कीमतों पर बेच दिया. माना जा रहा है कि सस्ता कर्ज देने, इन संपत्तियों को बेचने और उनका दोबारा भुगतान नहीं होने से बैंक को साल 2007 से 2011 के बीच करीब 1000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. रिकॉर्ड के मुताबिक, महाराष्ट्र के तत्कालीन वित्त मंत्री अजित पवार उस समय को-ऑपरेटिव बैंक के निदेशक थे.
बहरहाल, अपने खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने जेल जाने के कयासों को लेकर जिस तरह की खुशी जताई है और मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर जिस तरह से घोटाले के आरोपों का जवाब दिया है जिसमें उन्होंने साफ तौर से कहा है कि वह प्रवर्तन निदेशालय की जांच में पूरा सहयोग करेंगे और 27 सितंबर को वह खुद ईडी के दफ्तर में जांच के लिए उपस्थित रहेंगे, उससे तो यही लगता है कि मोदी सरकार ने जो जाल बिछाया है उसमें भाजपा कहीं खुद न फंस जाए.
क्योंकि अभी तक भाजपा और शिवसेना के बीच सीट बंटवारे को लेकर कोई फैसला नहीं हो पाया है और ऐसे में अगर यह मामला तूल पकड़ता है तो मतदाताओं के दिमाग में निश्चित रूप से यह बात पैठ जमा सकती है कि मोदी सरकार बदले की राजनीति को हवा दे रही है. चूंकि शरद पवार की एनसीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने का ऐलान किया है इसलिए यह कार्रवाई की गई है. ऐसे भी इसे ओछी राजनीति ही कही जाएगी कि कोई भ्रष्ट नेता या पार्टी भाजपा के साथ हो तो वह ईमानदार और कांग्रेस के साथ हो तो बेईमान.
(लेखक पिछले दो दशक से अधिक समय से प्रिंट और डिजिटल पत्रकारिता से जुड़े हैं और वर्तमान में आईटीवी डिजिटल नेटवर्क में कंसल्टिंग एडिटर के पद पर कार्यरत हैं)