मुंबई: महाराष्ट्र के उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री और बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के चेहरे पर स्याही फेंकी गई है. पुणे जिले के पिंपरी कस्बे में चंद्रकांत पाटिल के खिलाफ स्याही फेंकी गई है. चंद्रकांत पाटिल ने बीते दिन शुक्रवार को जो भाषण दिया था और इस दरमियान सावित्रीबाई फुले, महात्मा ज्योतिबा फुले और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और कर्मवीर भाऊराव पाटील के बारे में जो कहा था उससे जमकर विवाद हो गया. चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि इन लोगों को सरकारी अनुदान नहीं मिला है। शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होंने भीख मांगकर शिक्षण संस्थानों का निर्माण किया है.
भीख मांगने के मुद्दे पर जब चारों तरफ से तनाजा होने लगा और वो निशाने पर आ गए तो चंद्रकांत पाटिल ने कल के अपने बयान पर खेद जताने में जरा भी देर नहीं की और कहा कि उनका इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था बल्कि इन महापुरुषों के योगदान के बारे में जानकारी देना था.
इस मामले में कल ही उन्होंने माफ़ी माँगी थी और खेद भी जताया था लेकिन फिर भी उनपर स्याही फेंकी गई. उन्होंने कहा कि फिर भी वह उन लोगों से हाथ जोड़कर माफी माँगते हैं जिनकी भावनाएं आहत हुई हैं. इसके बावजूद आज जब वे एक कार्यक्रम में शामिल होने निकले तो पिंपरी में समता परिषद के कार्यकर्ताओं ने उनके खिलाफ नारेबाजी की और एक कार्यकर्ता ने उनके चेहरे पर स्याही फेंक दी, जिसके बाद वहां पर जमकर बवाल हो गया. उनके सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत उन्हें घेर लिया और घर के अंदर ले गए। कुछ समय बाद चंद्रकांत पाटिल शो में शामिल होने के लिए निकल गए.
खबरों के मुताबिक़ उन्होंने कहा, ‘मुझ पर किया गया हमला कायरतापूर्ण है। हिम्मत हो तो जो इसके पीछे है वो आगे आएं और मैं इस बर्बरता से डरने वाला नहीं हूं। मैंने कल ही माफी मांगी थी। हाँ, यह कहने के बजाय कि उन महापुरुषों ने भीख माँगी, मुझे यह कहना चाहिए था, “उन्होंने सहयोग स्वीकार किया था. लेकिन मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता हूं, मैं एक मजदूर का बेटा हूं। मेरी भाषा परिष्कृत नहीं है, लेकिन मेरा आशय इन महापुरुषों का अपमान करना कतई नहीं था।”
चंद्रकांत पाटिल ने कहा, ‘दरअसल, जो लोग इन सबके पीछे हैं, वे इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते कि गिरनी के एक मजदूर का बेटा आज इस ऊंचाई पर पहुंच गया है. इसमें उनकी छटपटाहट साफ़ झलक रही है। लेकिन वे हमारी आवाज नहीं दबा पाएंगे। यह गुंडागर्दी है…यह तानाशाही है, यह कोई लोकतांत्रिक तरीका नहीं है। बातों को शब्दों से सुलझाना होता है. मेरे बयान को ठीक से नहीं सुना गया.
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