12 साल बाद इस दिन लगेगा महाकुंभ का मेला, जानें क्या है इसके पीछे का इतिहास

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 2025 में होने वाले महाकुंभ मेले की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। हर 12 साल में आयोजित होने वाला यह महाकुंभ हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है, जहां लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के लिए आते हैं। महाकुंभ के अलावा प्रयागराज में हर 6 साल में अर्धकुंभ और 3 साल में कुंभ मेले का भी आयोजन होता है। 2013 के बाद अब 2025 में महाकुंभ का भव्य आयोजन होगा, जिसकी शुरुआत 29 जनवरी से होगी।

पापों का होता है नाश

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, जब बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं, तब प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। आगामी महाकुंभ की शुरुआत मकर संक्रांति के पावन दिन 14 जनवरी को होगी, जब पहला शाही स्नान किया जाएगा। इसके बाद दूसरा शाही स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन होगा, जबकि तीसरा शाही स्नान 3 फरवरी को बसंत पंचमी के अवसर पर होगा। इसके अतिरिक्त पौष पूर्णिमा का स्नान 13 फरवरी को, माघी पूर्णिमा का स्नान 12 फरवरी को और महाशिवरात्रि का स्नान 26 फरवरी को निर्धारित है।

हिंदू धर्म में कुंभ स्नान का विशेष महत्व है। बता दें,  मान्यता है कि कुंभ स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, यह भी कहा जाता है कि कुंभ स्नान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, जिससे उनका आशीर्वाद सदैव व्यक्ति पर बना रहता है।

चार प्रमुख स्थलों पर आयोजित

महाकुंभ मेला भारत में चार प्रमुख स्थलों पर आयोजित होता है: हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन। इसका हरिद्वार में गंगा तट पर, प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर, नासिक में गोदावरी के तट पर और उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर महाकुंभ का आयोजन होता है। वहीं ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर इन स्थलों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है, जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब उज्जैन में महाकुंभ का आयोजन होता है। इसी तरह ग्रहों की स्थिति के आधार पर अन्य स्थलों पर भी महाकुंभ आयोजित किया जाता है।

महाकुंभ मेले का इतिहास

महाकुंभ मेले का पौराणिक इतिहास संदर्भ समुद्र मंथन से जुड़ा है। बता दें, मान्यता है कि देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से निकला अमृतकलश को लेकर देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष हुआ। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरीं प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। यही कारण है कि इन चार स्थानों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरने से ये स्थल अत्यंत पवित्र हो गए और यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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