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मदरसे में पढ़ाई जाने वाली किताब से ऐतराज़ क्यों, क्या हिंदू-मुस्लिम को बांटने की साजिश!

मदरसे में पढ़ाई जाने वाली किताब से ऐतराज़ क्यों, क्या हिंदू-मुस्लिम को बांटने की साजिश!

नई दिल्ली: क्या आप भी ऐसा सोचते है कि बिहार के मदरसों की किताबों में नफरत की बातें पढ़ाई जाती है? मदरसा की किताब में जो इस्लाम पर यकीन नहीं करते है और उसे दंड देने जैसी बातें बताई जाती है? वहीं राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग यानी की एनसीआरपीसी अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने मदरसे की शिक्षा को लेकर आरोप लगाया है और एक्स पर पोस्ट भी किया है. उसके बाद से यह खबर लगातार सुर्खियों में हैं. बता दें कि एक्स पर उन्होंने किताब का जिक्र करते हुए नाम बताया है. उन्होंने बताया है कि किताब का नाम तालीमुल इस्लाम है. इस किताब के नाम का मतलब तालीम यानी शिक्षा होता है.

 

पढ़ाई जाती है

 

बता दें कि इसी किताब से जुड़ी एक और किताब है, जो मदरसा में बच्चें को पढ़ाई जाती है, जिसका नाम है तालीमुल कुरान, यानी कि कुरान की शिक्षा. हालांकि, मैंने खुद वो किताब पढ़ी और उसकी जांच भी की, लेकिन जिस तालीमुल इस्लाम किताब की बात एनसीआरपीसी अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो की हैं, वो किताब करीब आज से पचास-साठ साल पहले मौलाना मोहम्मद किफायतुल्लाह ने लिखी थी. वो किताब दिल्ली के दरियागंज इलाके में छापी गई थी.

 

काफिर कहा जाता है

 

वहीं इसमें उन्होंने एक मुद्दा जो उठाया है, वो ये कि इस्लाम जो नहीं मानते हैं, उन्हें उर्दू में काफिर कहा जाता है. मुझे लगता है कि इस कॉन्सेप्ट से तो सभी हिन्दू और मुस्लिम जानते ही होंगे कि इस्लाम में जो अल्लाह को नहीं मानते हैं उनको काफिर कहा ही जाता है. ये शब्द और उसके मायने सभी जानते हैं, वैसे ये अलग है बात है कि विश्लेषक समय-समय पर इस शब्द पर अपनी अलग तरह से बताते हैं.

 

 

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