मंदसौर. बेटा-बेटी एक समान और बेटी बचाओ जैसे नारे सिर्फ दीवारों और विज्ञापनों तक ही सीमित रह गए हैं. आज भी लोगों को वंश आगे बढ़ाने के लिए लड़का ही चाहिए. बेटियों को बोझ ही माना जाता है. ऐसा ही देखने को मिला है मध्य प्रदेश के मंदसौर में. यहां एक परिवार चाहता था कि उनके घर बेटे का जन्म हो लेकिन बेटी पैदा हो गई. इस पर परिवार वालों ने उसका नाम रख दिया अनचाही यानि अवांछित.
इस बेटी का जन्म भी नवरात्रि में हुआ था जब पूरे देशभर में देवी दुर्गा की पूजा होती है और कन्याओं को भोजन कराया जाता है. लेकिन जब बात परिवार की आती हो तो लोगों की असलियत खुलकर सामने आ ही जाती है. इसी महीने महिला दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बेटियां बोझ नहीं हैं. वे हर क्षेत्र में नाम रौशन कर रही हैं. वे परिवार की आन बान शान हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा था कि बेटियों के प्रति समाज की सोच बदलनी होगी. अगर घर की सास इस काम को अपने हाथ में ले लेगी तो लड़कियों और लड़कों का समान अनुपात पाने के लक्ष्य में देर नहीं लगेगी. प्रधानमंत्री ने इस मौके पर बेटी बचाओ बेटी प ढ़ाओ योजना का देश भर में विस्तार की घोषणा की और महिलाओं बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन का शुभारंभ किया था. लेकिन इस परिवार ने इससे इतर सरकार की सारी कोशिशों को धता बताने वाला काम कर डाला.