देश-प्रदेश

मैडम तुसाद म्यूजियम ने भी प्लेन क्रैश में ही मार दिया नेताजी सुभाष चंद्र बोस को…!

नई दिल्ली. भारतीयों में मैडम तुसाद म्यूजियम को लेकर काफी क्रेज रहता आया है, जब भी किसी अभिनेता का वैक्स स्टेच्यू बना बड़ी खबर की तरह देखा गया, पीएम मोदी का वैक्स स्टेच्यू बना तो और ज्यादा चर्चा हुई. लेकिन अब तक लोग मैडम तुसाद म्यूजियम को देखने के लिए लंदन ही जाते थे, तो ऐसे में काफी गिने चुने लोगों को ये मौका मिल पाता था. फिर मैडम तुसाद म्यूजियम की ब्रांच कई और देशों में खुली और फायनली दिल्ली में भी 1 दिसम्बर से पब्लिक के लिए खुल ही गया. इस म्यूजियम में बॉलीवुड, हॉलीवुड, म्यूजिक और स्पोर्ट्स के तो देश विदेश के सितारों के स्टेच्यूज हैं हीं, एक हिस्ट्री और लीडर्स के नाम से भी सैक्शन है और हिस्ट्री के लिए जरूरत से ज्यादा भावुक देशवालों के बीच उनका यही सैक्शन विवाद की वजह बन सकता है.

दरअसल मैडम तुसाद म्यूजियमस, दिल्ली के इस हिस्ट्री और लीडर्स सैक्शन के तहत मोदी और कलाम के वैक्स स्टैच्यूज के अलावा गांधीजी, भगत सिंह और सरदार पटेल व नेताजी बोस के वैक्स स्टेच्यूज भी हैं. यहां गौर करने वाली बात है कि पंडित नेहरू या उनके परिवार में से किसी का स्टेच्यू नहीं है. हालांकि इस बात पर शायद विवाद ना हो, विवाद की वजह हो सकती है नेताजी बोस के स्टेच्यू की साथ लगी इनफॉरमेशन प्लेट.

इस सैक्शन में बाकी सभी स्टेच्यू तो अलग अलग खड़े हैं यानी गांधीजी, भगत सिंह, मोदी और डा. कलाम लेकिन पटेल और बोस के स्टेच्यूज एक कम ऊंचाई की मेज के साथ बैठे हुए बनाए हैं. दरअसल इस तरह की मेज कांग्रेस के अधिवेशनों में अध्यक्ष के सामने रखी जाती थी, और अध्यक्ष जमीन पर ही गद्दा लगाकर बैठते थे. बाकी बड़े नेता भी आसपास बैठते थे. बगल में लगी इनफॉरमेशन प्लेट को भी आप इस लेख के साथ लगी तस्वीर में देख सकते हैं और इसी में विवाद की वजह. इस प्लेट में उनका नाम लिखा है- सुभाष चंद्र बोस और उसके नीचे पहले डेट ऑफ बर्थ लिखी है यानी 23 जनवरी 1897 और उसके ठीक नीचे वाले लाइन में उनकी डेट ऑफ डैथ लिखी है यानी वो तारीख 18 अगस्त 1945 जिस दिन सुभाष चंद्र बोस का प्लेन एक्सीडेंट हुआ था.

इसका मतलब साफ है जिस बात के लिए भारत सरकार ने कई आयोग बैठाए, आज तक नेताजी बोस को ऐलान के बाद भी भारत रत्न तक नहीं दिया जा सका. दो साल पहले रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने बोस को डैथ एनीवर्सरी पर याद करके ट्वीट वापस लेना पड़ा, यूपी सरकार को गुमनामी बाबा की जांच के लिए आयोग बैठाना पड़ा, पश्चिम बंगाल और केन्द्र की मोदी सरकार को सीक्रेट फाइल्स रिलीज करनी पड़ीं और इतने बड़े विवाद को बिना जांचे समझे या बिना उसकी अहमियत समझे मैडम तुसाद म्यूजियम दिल्ली के प्रवंधन ने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी? ये वाकई में हैरान कर देने वाला वाकया है.

ये विवाद कितना बड़ा है, इसे आज की पीढ़ी इस बात से भी समझ सकती है कि हाल ही में एकता कपूर ने बोस- डैड/एलाइव के नाम से राजकुमार राव जैसे हीरो को लेकर पूरी सीरीज बना डाली. इस सीरीज को जिस रिसर्चर और इतिहासकार की बुक ‘इंडियाज बिगेस्ट कवरअप’ के आधार पर लिखा गया है वो लेखक और बोस से जुड़े रहस्यों से परदा उठाने के लिए सालों से लडाई लड़ रहे अनुज धर का कहना है कि, ‘’मैडम तुसाद म्यूजियम को भारत की किसी भी ऐतिहासिक हस्ती को शामिल करते वक्त ये ध्यान रखना होगा कि लोगों की भावनाएं उनको लेकर क्या हैं, वो कई तरह के तर्क दे सकते हैं, लेकिन बोस का कद इस देश के लोगों के दिलों में इतना बड़ा है और बोस से लोगों का इतना जुड़ाव है कि वो प्लेन क्रैश में मौत की बात को स्वीकार ही नहीं करते और ना करेंगे.‘’

इस इनफॉरमेशन प्लेट में आप पढ़ सकते हैं कि सबसे नीचे डेट ऑफ पोट्रेयल 1938 लिखा है, ये वो साल है जब सुभाष चंद्र बोस पहली बार हरिपुरा अधिवेशन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे और अगली साल गांधीजी से मतभेदों के चलते अक्ष्यक्ष पद का चुनाव जीतकर भी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. अभी चूंकि 10 ही दिन हुए हैं मैडम तुसाद को भारत में खुले हुए तो जाहिर है उन्हैं इस तरह के विवादों से बचने के लिए कुछ बदलाव करने होंगे, कुछ सावधानियां बरतनी होंगी. देखने वाले .ये भी मान रहे हैं कि हॉलीवुड वालों या बाकी फील्ड्स के विदेशी सेलेब्रिटीज की तुलना में भारतीयों के वैक्स स्टैच्यूज की क्वालिटी था कमतर है. हालांकि अभी तक मैडम तुसाद म्यूजियम के स्थानीय प्रबंधन से सम्पर्क नहीं हो सका है, लेकिन ये विवाद कल को ब़ड़ा हो सकता है.

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Aanchal Pandey

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