नई दिल्ली : सोमवार को तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. वहीं अब आपसी सहमति से तलाक लेने वालों का 6 महीने का इंतजार खत्म हो गया है. कोर्ट ने फैसले में कहा कि अगर शादी इस मुकाम तक पहुंच जाए जहां सुलह की कोई गुंजाइश नहीं हो तो कोर्ट तलाक के लिए मंजुरी दे सकता है.इस मामले में फैमिली कोर्ट की जगह सीधे सुप्रीम कोर्ट से तलाक लिया जा सकता है.
ये संवैधानिक फैसला जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस ओका, और जस्टिस जेके माहेश्वरी के अंतर्गत लिया गया. 29 सितंबर को बेंच ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के सामने कई ऐसी याचिकाएं दायर की गई थी, जिसमें ये पूछा गया था कि क्या आपसी सहमति के बावजूद भी तलाक के लिए इंतजार करना जरुरी है? याचिकाओं में मांग की गई थी कि हिंदू मैरिज एक्ट के धारा 13B के तहत आपसी सहमती से जरुरी वेटिंग लिस्ट में छूट दी जा सकती है या नहीं? आपको बता दें कि ये मामला 29 जून 2016 को संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया था.वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी विचार जाहिर किया था कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत वो ऐसा आदेश जारी कर सकता है.
पांच जजों के संवैधानिक बैठक ने फैसला लेते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 तहत संवैधानिक अधिकार का इस्तमाल करते हुए 6 महीने के इंतजार को कुछ मामलों में खत्म कर सकती है.
1955 के हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 के तहत ‘तलाक’ के प्रावधान का
उल्लेख किया गया है. धारा 13B एक्ट में उन स्थितियों का जिक्र है जिसमें आपसी सहमति से एक दूसरे से तलाक लिया जा सकता है. हालांकि, इस धारा के तहत तभी तलाक लिया जा सकता है या आवेदन किया जा सकता है जब शादी के कम से कम एक साल हो गए हैं. इसके अलावा इस धारा के एक और प्रावधान है कि फैमिली कोर्ट आपसी सुलह के लिए के लिए दोनों पक्षों को 6 महिनें का वक्त देता है और अगर मामला फिर भी नहीं सुलझा तो तलाक हो जाता है.
-पति या पत्नी में से कोई भी शादी के छुट दि जा बाद किसी अन्य व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाता हो.
-शादी के बाद अपने पार्टनर के साथ शारीरिक या मानसिक किसी भी तरह से क्रूरता का व्यवहार रखता हो.
– बिना किसी ठोस वजह के एक दूसरे से अलग रह रहें हो.
– दोनों पक्षों में से कोई एक अपना धर्म त्याग कर कोई और धर्म अपना लेता हो.
– यदि दोनों में से कोई एक को संक्रामक यौन रोग हो.
– दोनों में से कोई एक मानसिक रोग से ग्रस्त हो और उसके साथ वैवाहिक जीवन जीना असंभव हो.
– अगर पति या पत्नी में से कोई भी संन्यास ले ले.
– अगर 7 साल तक दोनों में से किसी एक के जीवित रहने कि खबर न मिली हो.
– अगर शादि के बाद पति बलात्कार का दोषी पाया जाता हो.
– अगर पत्नी की उम्र शादि के दौरान 15 साल से कम रही हो तब वो 18 साल पूरा होने से पहले तलाक ले सकती है.
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