देश-प्रदेश

बिना फ़ोन वाले नेता…एक दुखी पिता, कौन है कर्नाटक में कांग्रेस का CM चेहरा बनने वाले सिद्धारमैया

नई दिल्ली: कर्नाटक का किंग कौन होगा? इस सवाल पर पिछले चार दिनों तक कांग्रेस में मंथन चलता रहा. आखिरकार कर्नाटक को उसका अगला मुख्यमंत्री मिल गया और ये ताज सिद्धारमैया के सिर पर सजा. आपको याद होगा कि पिछले साल मध्य कर्नाटक में सिद्धमहोत्सव का जश्न मनाया गया था. दरअसल ये जश्न सिद्धारमैया के जन्मदिन पर मनाया गया था जिसमें 6 लाख से अधिक लोग शामिल हुए. सैकड़ों लोग कार्यक्रम में सीट घेरने के लिए रात भर खुले मैदान में सोते रहे. राहुल गांधी जैसे बड़े नेता को इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए घंटों तक इंतज़ार करना पड़ा. इस एक घटना से आपको अंदाजा लग गया होगा कि कर्नाटक में सिद्धारमैया का क्या महत्त्व है.

फ़ोन से बनाई है दूरी

सिद्धमहोत्सव सिद्धारमैया का पहला शक्ति प्रदर्शन था जिसने पार्टी नेतृत्व को याद दिला दिया कि आखिर सिद्धारमैया कौन हैं? जनता के नेता कहलाने वाले सिद्धारमैया के पास अपने समर्थकों की भरपूर ताकत है. आज तक वह किसी फ़ोन का इस्तेमाल नहीं करते वह केवल अपने निजी सहायक के जरिए ही दुनिया के नेताओं से संपर्क में रहते हैं.

गरीबों को केंद्र में रखा

2013-18 के बीच उन्होंने कांग्रेस सरकार में कर्नाटक मुख्यमंत्री का पद संभाला। उनका नेतृत्व कर्नाटक में मील का पत्थर माना जाता है क्योंकि इस राज्य में अधिकतर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर पाए हैं. कांग्रेस पार्टी की ‘अन्न भाग्य योजना’ का चेहरा रहे सिद्धारमैया गरीब तबके के लोगों के बीच किसी फ़रिश्ते की तरह हैं जिन्होंने हर महीने 7 किलो मुफ्त चावल दिया.

 

उन्हें ही क्यों चुना सीएम?

 

अब तक आपको अंदाजा लग गया होगा कि कर्नाटक में सिद्धारमैया का क्या दबदबा है. हालांकि उनकी दावेदारी होने के बाद भी पांच दिन तक पार्टी में सीएम चेहरे को लेकर मंथन चलता रहा. आखिर में उन्होंने डीके शिवकुमार को पछाड़ते हुए सीएम का ताज ले लिया. दरअसल सिद्धारमैया जमीन की राजनीति से जुड़े हुए हैं. उनके साथ कुरुबा समुदाय का साथ है. वह एक ऐसे राजनेता हैं जो ग्रामीण, कृषि संबंधी मुद्दों से भी जुड़े हुए हैं. इतना ही नहीं अन्य दल भी उन्हें खूब सम्मान देते हैं.

कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष साख को सिद्धारमैया बखूबी दर्शाते हैं. बीजेपी नेताओं ने उन्हें चुनावों से चार महीने पहले सिद्धारमुल्ला खान के रूप में दिखाया. उनपर एक विशेष समुदाय को खुश करने का आरोप लगा. टीपू जयंती समारोह आयोजित करने को लेकर भी सिद्धारमैया को खूब घेरा गया. शादी भाग्य योजना को लेकर उनकी आलोचना की गई जहां PFI कार्यकर्ताओं के खिलाफ सभी मामलों को वापस लेने पर भी उनपर ज़ुबानी हमले हुए.

ऐसी है सिद्धारमैया की राजनीति

सिद्धारमैया के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं जिसमें उनका मोबाईल ना इस्तेमाल करना, बड़े से बड़े नेता से संपर्क करने के लिए पीए की मदद लेना. गरीबो को केंद्र में रखना और उनके बेटे का भावुक पक्ष भी शामिल है. वह शुरुआत से ही चतुर नेता रहे हैं जो जनता की ताकत को जानते और समझते हैं. इसलिए राज्य में उन्होंने अपनी अच्छी साख विकसित की है.

RSS का करते हैं विरोध?

 

राहुल गांधी के समान ही सिद्धारमैया आरएसएस-बीजेपी की विचारधारा को लेकर गहरे आलोचक रहे हैं. सिद्धारमैया सरकार के लिंगायत समुदाय को “धार्मिक अल्पसंख्यक” का दर्जा देने के फैसले की बदौलत 2018 में पार्टी को खूब नुकसान हुआ. लेकिन भाजपा से बेहतर प्रदर्शन कर उन्होंने दिखा दिया कि उनकी लोकप्रियता बनी रहेगी. उन्हें लेकर कई दृढ मान्यताएं हैं कि वह अपने हित और पार्टी के हित से ऊपर जनता को रखते हैं.

भ्रष्टाचार के विरुद्ध

 

इतना ही नहीं राज्य की राजनीति में सिद्धारमैया की बेहद साफ़-सुथरी छवि है. हालांकि उन्होंने काफी विवाद भी झेले हैं लेकिन राजनीतिक विरोधियों को उन्होंने हर बार बड़ी ही सरलता से जवाब दिया है. व्यक्तिगत लाभ के लिए सिद्धारमैया पर कभी भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है जो बड़ी बात है.

बेटे को खोना सबसे बड़ा दुख

 

सिद्धारमैया के दुख को एक पिता के रूप में उनके कई करीबी याद करते हैं. सिद्धारमैया के सबसे बड़े बेटे राकेश सिद्धारमैया का 2016 में बेल्जियम विश्वविद्यालय के अस्पताल में निधन हो गया था. राकेश सिद्धारमैया के उत्तराधिकारी के रूप में जाना जाता था. इस दौरान सिद्धारमैया को बेहद भावुक देखा गया क्योंकि उन्हें बेटे का शव लाने के लिए ब्रसेल्स जाना पड़ा था. हालांकि छोटे बेटे यतींद्र को राकेश की मौत के बाद राजनीति में लाया गया.

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Riya Kumari

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