नई दिल्ली: बाबा सिद्दीकी की हत्या के मामले में तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, अन्य की तलाश में मुंबई पुलिस लगातार छापेमारी कर रही है. वहीं पुलिस कई एंगल से मामले की जांच कर रही है. गिरफ्तार आरोपियों की क्राइम कुंडली खंगालने के साथ ही लॉरेंस विश्नोई गैंग द्वारा हत्या के दावे की सच्चाई का भी पता लगाया जा रहा है.
हालांकि ये वो सवाल हैं जिनके जवाब पुलिस तलाश रही है, लेकिन इन सबके अलावा देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई में हुई इस बेहद हाईप्रोफाइल घटना के बाद एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या तीन दशक बाद… मुंबई में अंडरवर्ल्ड का प्रभाव नहीं रहेगा. दोबारा एंट्री हो गई? वहीं ये सवाल इसलिए… क्योंकि सिद्दीकी की हत्या पिछले तीन दशक में मुंबई में किसी हाई-प्रोफाइल नेता की हत्या का पहला मामला है जिसने पूरे राज्य को दंग कर दिया हैं.
नब्बे के दशक में मुंबई की छवि सपनों के शहर के रूप में थी, लेकिन अंडरवर्ल्ड ने मुंबई की इस छवि को धूमिल कर दिया। आतंक का ऐसा राज था कि मीलों दूर रहने वाले लोग भी मुंबई जाने से डरते थे और आतंक का ये अध्याय सत्तर के दशक में ही शुरू हो गया था. हालांकि उस समय एक शख्स ऐसा भी था जिसके नाम से बड़े-बड़े माफिया कांपते थे। उन्होंने कभी बंदूक नहीं उठाई. कभी कोई गोली नहीं चलाई. कभी मर्डर नहीं किया, लेकिन बन गया मुंबई का सबसे बड़ा डॉन. जी हां वो और कोई नहीं बल्कि सुलतान मिर्जा था.
उन्होंने कभी बंदूक नहीं उठाई. हालांकि कभी कोई गोली भी नहीं चलाई. कभी मर्डर तक नहीं किया, लेकिन बन गया मुंबई का सबसे बड़ा डॉन. बता दें कि उस शख्स का नाम था सुल्तान मिर्जा.. यानी कि उर्फ हाजी मस्तान. वहीं हाजी मस्तान के पिता 1934 में मुंबई आये। हाजी मस्तान के पिता ने क्रॉफर्ड मार्केट में एक पंचर की दुकान खोली। हाजी मस्तान भी अपने पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा. वहीं इस काल में बम्बई का बंदरगाह फल-फूल रहा था।
विदेशों से बहुत सारा माल आ-जा रहा था। मस्तान को बंदरगाह पर कुली की नौकरी मिल गयी। उन्हें कुली कहा जाता था, लेकिन उनका असली कारोबार तस्करी था। बंदरगाह से घड़ियाँ, वॉकमैन, रेडियो और अन्य चीज़ों की तस्करी शुरू कर दी। फिर धीरे-धीरे वह तस्करी की दुनिया से निकलकर वेश्यावृत्ति की दुनिया में चला गया। 1970 तक हाजी मस्तान को पूरा बॉम्बे जानने लगा था।
1975 में देश में आपातकाल लगाया गया। मस्तान जैसे कई डॉन को जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटने के बाद हाजी मस्तान ने राजनीति में कदम रखा. दलित-मुस्लिम सुरक्षा महासंघ नाम से पार्टी बनाई. 1990 में इसका नाम बदलकर ‘भारतीय अल्पसंख्यक महासंघ’ कर दिया गया। पार्टी ने बंबई, कलकत्ता और मद्रास में नागरिक चुनाव लड़े, लेकिन सफल नहीं रही। एक समय ऐसा आया जब हाजी मस्तान बॉलीवुड में पॉपुलर होने लगा…फिल्मी सितारे उसकी धुन पर नाचते थे। हाजी मस्तान की 1994 में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। हाजी मस्तान की मृत्यु के बाद उनके शिष्य दाऊद इब्राहिम ने मुंबई अंडरवर्ल्ड पर शासन करना शुरू कर दिया।
तारीख थी 12 अगस्त 1997 और दिन था मंगलवार. 42 साल के कैसेट किंग गुलशन कुमार पूजा की थाली लेकर अपने घर से निकले. करीब 10:10 बजे सफेद कुर्ता और सफेद सैंडल पहने गुलशन कुमार अपनी मैरून रंग की मारुति एस्टीम कार से उतरे और शिव मंदिर में पूजा करने चले गये. 10.40 बजे गुलशन कुमार मंदिर से पूजा करके अपनी कार की ओर आ रहे थे. जैसे ही वे कुछ कदम चलते हैं, घात लगाकर बैठे बदमाश उन पर हमला कर देते हैं। दाऊद के गुर्गों ने गुलशन कुमार पर कुल 16 गोलियां चलाईं। सूचना के बाद पहुंची पुलिस गुलशन कुमार को ले गई, लेकिन तब तक डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इस घटना ने एक बार फिर मुंबई में अंडरवर्ल्ड के खौफ को उजागर कर दिया. बेहद हाईप्रोफाइल मामला होने के कारण जांच में तेजी आई।
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प्रत्यक्षदर्शियों के आधार पर हमलावरों का प्रोफाइल तैयार किया गया. दो दिन के अंदर क्राइम ब्रांच ने 6 लोगों को गिरफ्तार किया.. ये सभी अबू सलेम ग्रुप से जुड़े थे.. पूछताछ में इन सभी ने दुबई में मीटिंग की बात कबूली है. दरअसल, गुलशन कुमार को काफी समय से धमकियां मिल रही थीं। अंडरवर्ल्ड से 10 करोड़ रुपये की फिरौती मांगी जा रही थी.
वहीं गुलशन कुमार की हत्या के बाद मुंबई पुलिस ने अंडरवर्ल्ड की कमर तोड़ने का फैसला किया. अपराधियों को खत्म करने के लिए मकोका जैसा कानून बनाया गया. केंद्रीय जांच एजेंसियों आईबी, रॉ, सीबीआई का स्थानीय पुलिस के साथ समन्वय बढ़ा। एनकाउंटर शुरू हो गए, जिसने अंडरवर्ल्ड को पूरी तरह से खत्म कर दिया, लेकिन बाबा सिद्दीकी की हत्या ने एक बार फिर अंडरवर्ल्ड की दस्तक का एहसास करा दिया है.
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