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Lal Bahadur Shastri Jayanti 2019: भारत को जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर जानें उनके जीवन से जुड़े अनसुने किस्से

Lal Bahadur Shastri Jayanti 2019: 1964 में जवाहरलाल नेहरू के मरणोपरांत सर्वसम्मति से लालबहादुर शास्त्री को भारत के प्रधानमंत्री चुना गया. यह एक मुश्किल समय था और देश बड़ी चुनौतियों से जूझ रहा था. कोमल स्वभाव के व्यक्ति लालबहादुर शास्त्री ने इल अवसर पर अपनी सूझबूझ और तरुरता से देश का नेतृत्व किया. सैनिकों और किसानों को उत्साहित करने के लिए उन्होंने जय जवान, जय किसान का नारा दिया. पाकिस्तान को युद्ध में भारत ने हरा दिया. इसके बाद शास्त्री जी की नेतृत्व का प्रशंसा पूरे देश में हुई.

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Lal Bahadur Shastri Jayanti 2019
  • October 1, 2019 8:13 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago

नई दिल्ली. लालबहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री रहे हैं. उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहां हुआ था. शास्त्री जी 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपने मृत्यु तक लगभग 18 महीने भारत के प्रदानमंत्री रहें. इस पद पर रहते हुए शास्त्री जी ने अद्धितीय कार्य किया. जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई को देहांत हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के वजह से शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमंत्री बनाया गया. उन्होंने 9 जून 1964 को भारत प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया.

लालबहादुर शास्त्री के शासनकाल में ही 1965 का भारत-पाक युद्ध शुरू हो गया. इससे तीन साल पहले भारत चीन से युद्ध हार चुका था. शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी. इसकी काल्पना पाकिस्तान के आकाओं ने सपने में भी नहीम की थी. ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध विराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जून 1966 के ही रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मौत की गुथी आज भी नहीं सुलझ पाई है.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लालबहादुर शास्त्री ने सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों और आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी रही. इसके परिणाम स्वरूप उन्हें कई बार जेल में भी रहना पड़ा. स्वाधीनता संह्राम के जिन आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन प्रमुख है. दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटेन को बुरी तरह से उलझता देख जैसे ही नेताजी ने अजाद हिंद फौज को दिल्ली चलों का नारा दिया , महात्मा गांधी जी ने मौके की नजाकत को पहचानते हुएं 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से “अंग्रेजों को भारत छोड़ो” और भारतीय को “करो या मारो” का आदेश जारी किया. 9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्रीजी ने इलाहाबाद पहुंचकर इस आंदोलन के गांधीवादी नारे को चतुराई पूर्वक “मरो नहीं, मारो” में बदल दिया. अप्रत्याशित रूप से इस क्रान्ति को पूर् देश में प्रचण्ड रूप दे दिया. पूरे11 दिन तक भूमिगत रहते हुए आंदोलन को सफलता पूर्वक चलाने के बाद 19 अगस्त 1942 को अंग्रेजों ने शास्त्रीजा को गिरफ्तार किया.

शास्त्रीजी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में पुरूषोत्तमदास टंडन और गोविंद बल्लभ पंत के अतिरिक्त जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे. सबसे पहले 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने भारत सेवक संघ की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया. इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरू जी के साथ उनकी निकटता बढी. इसके बाद तो शास्त्री जी का कद लगातार बढ़ता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढ़ियां चढते हुए वे नेहरू जी के मंत्रिमण्डल में गृहमंत्री के जैसे महत्वपूर्ण पद तक जा पहुंचे. और बाद में नेहरू जी के निधन के बाद भारत के प्रधानमंत्री भी बने.

लालबहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में हुआ था. इनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और मां का नाम रामदुलारी थी. लाल बहादुर शास्त्री का उपनाम श्रीवास्तव था पर उन्होंने इसे बदल दिया क्योंकि वह अपनी जाति को अंकित नहीं करना चाहते थे. इनका बचपन काफी गरीबी में गुजरी है. काशी विधापीठ से शास्त्री की उपाधी मिलते ही शास्त्री जी ने अपने नाम के साथ शास्त्री हमेशा के लिए जोड़ लिया.

 

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