Rajan Rao on Farmers Protest: दक्षिण हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी राजन राव ने कहा कि केंद्र सरकार को तुरंत तीनो काले कृषि कानूनों को रद्द कर देना चाहिए, जिसके खिलाफ किसान 2020 से आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने तीन कृषि बिल को बिना बहस किये ही तानाशाही कर जबरदस्ती पारित कर दिए थे। […]
Rajan Rao on Farmers Protest: दक्षिण हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी राजन राव ने कहा कि केंद्र सरकार को तुरंत तीनो काले कृषि कानूनों को रद्द कर देना चाहिए, जिसके खिलाफ किसान 2020 से आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने तीन कृषि बिल को बिना बहस किये ही तानाशाही कर जबरदस्ती पारित कर दिए थे। किसानों की फसल की बिक्री, एमएसपी और भंडारण के नियमों को किसानों के खिलाफ औऱ पूंजीपतियों के पक्ष में किया गया है – दशकों से किसानों को मुक्त बाजारों से बचाने वाले नियम। इस कानून के चलते अब पूंजीपति लोग भविष्य में वस्तुओं की जमाखोरी करेंगे पहले जो केवल सरकारी अधिकृत एजेंटों को करने की अनुमति थी।
किसान पिछले साल अगस्त से इन बिलों का विरोध कर रहे हैं, लेकिन उनके सभी विरोध सरकार को दिखाई नही दे रहा है। विधेयकों के सार्वजनिक होने के बाद हर तरफ से किसानों ने विरोध करना शुरू कर दिया, नवंबर 2020 में, किसानों ने केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए दिल्ली तक मार्च करने का फैसला किया। अधिनियमों को वापस लें या कम से कम चर्चा या बातचीत के लिए मेज पर आएं, लेकिन केंद्र सरकार ने उसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। भगत सिंह ने एक बार कहा था कि “अगर बेहरो को सुनाना है, तो आवाज बहुत तेज होनी चाहिए।” उन्होंने यह हमारे पूर्व औपनिवेशिक आकाओं के लिए कहा था, लेकिन हो सकता है कि वे केंद्र में मौजूदा सरकार के लिए भी कह रहे हों। कड़ाके की ठंड, गर्मी और मूसलाधार बारिश में देश की राष्ट्रीय राजधानी की ओर जाने वाली सड़कों पर खड़े किसानों की दुर्दशा का देश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले शासक वर्ग पर कोई असर नहीं पड़ा है। यूपी में किसान महापंचायत जहां उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और राजस्थान से लाखों किसान इकट्ठा हुए लेकिन केंद्र सरकार के कान पर जू तक नही रेंगी बल्कि सरकार के मंत्री और उसकी गोदी मीडिया तेज हो गई और महापंचायत को चुनावी सभा बुलाने लगे।
58% भारतीय आबादी की रोजी रोटी कृषि पर ही टिकी है जिसमे ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान हैं। इनमें से 68% के पास एक हेक्टेयर से भी कम जमीन है। उनमें से केवल 6% ही वास्तव में अपनी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त करते हैं, और 90% से अधिक किसान अपनी उपज को बाजार में बेचते हैं। किसानों को डर है कि निजी कंपनियों के आने से शुरुआत में हो सकता है अच्छा मूल्य दे, लेकिन जैसे ही सरकारी मंडी खत्म होगी उसके बाद ये कंपनिया किसानों का शोषण करने में लग जायेगी।
सरकार किसानों पर लगातार तरह तरह के आरोप लगाकर किसानों को बदनाम करने का काम कर रही है। किसानों पर झूठे मुकदमे दर्ज किए जा रहे है ताकि आन्दोलन को कमजोर किया जा सके। सरकार का ध्यान किसानों के खिलाफ कार्यवाई करने में नही बल्कि कृषि क्षेत्र में घटती उत्पादकता औऱ किसानों की समस्याओं पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।
इसके साथ ही सरकार को चाहिए कि वे किसानों के साथ बातचीत का रास्ता अपनाकर कृषि कानूनों को या तो वापिस लेती या उनमे जरूरी बदलाव करती ताकि गर्मी, शर्दी बारिश में सड़क पर बैठा अन्नदाता इस तरह से परेशान ना होता और ना ही सैकड़ो किसानों को अपनी सहादत देनी पड़ती। केंद्र में बेलगाम सरकार कैसे काम करती है ये इसका जीता जागता उदाहरण है कि वो ना तो किसानों से बात कर रहे है और ना ही उनकी मांग मान रहे है। बल्कि जब किसान लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात कह रहे है तो उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। लोकतंत्र की बात करने वाली केंद्र सरकार को केवल लोकतंत्र चुनाव के समय दिखाई देता है। उसके बाद वो धीरे धीरे लोकतंत्र की परिभाषा भूल जाती है। सही मायने में अब केंद्र सरकार लोकतंत्र की परिभाषा भूल रही ही औऱ तानाशाही पर उतारू है।