वाराणसी। ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे का काम पूरा हो गया है। हालांकि इसको लेकर काफी विवाद भी हुआ,लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद सोमवार को सर्वे का काम पूरा कर लिया गया है। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद में वुजू की जगह पर शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा देखा गया है। इस दावे के […]
वाराणसी। ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे का काम पूरा हो गया है। हालांकि इसको लेकर काफी विवाद भी हुआ,लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद सोमवार को सर्वे का काम पूरा कर लिया गया है। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद में वुजू की जगह पर शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा देखा गया है। इस दावे के बाद कोर्ट ने उस जगह को सील करने का आदेश दिया है। अब मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है.
मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी विवाद ‘पूजा स्थल अधिनियम’ के दायरे में आता है। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि ज्ञानवापी मामले की सुनवाई में ‘पूजा स्थल अधिनियम’ बाधा नहीं बनता क्योंकि तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद और विस्तारित शिव मंदिर, दोनों एक ही प्रांगण हैं, दोनों एक ही परिसर का हिस्सा हैं।
उन्होंने कहा कि यह एक स्थापित ऐतिहासिक तथ्य है कि औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ा और वहीं बनवाया। उस इमारत में मंदिर के कई हिस्सों का भी इस्तेमाल किया गया था। ऐसे में सवाल यह है कि 15 अगस्त 1947 को उस जगह की क्या स्थिति थी, यह कैसे तय होगा।
राकेश द्विवेदी ने कहा कि पहली बार में अगर हम मान लें कि आधे में नमाज़ और आधी में इबादत होती है तो ऐसे में हम उस परिसर को आधा-आधा मंदिर-मस्जिद में बांट देते हैं.।उन्होंने कहा कि एक बार जब कोई ऐतिहासिक तथ्य को स्वीकार कर लेता है कि एक मंदिर था, तो केवल प्रार्थना करने से मस्जिद की स्थिति का फैसला नहीं किया जा सकता है। नमाज अदा करने से कोई जगह मस्जिद नहीं बन सकती। सार्वजनिक स्थान पर नमाज अदा करने से वह स्थान मस्जिद नहीं हो सकता।
वकील ने कहा कि इस्लामिक कानून के अनुसार ही ऐसी मस्जिद वैध नहीं है, जो किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई हो। पैगंबर मुहम्मद ने खुद ऐसी मस्जिदों को नष्ट करने का आदेश दिया था। ऐसे में मंदिर को तोड़कर बनाई गई यह इमारत वैध मस्जिद कैसे हो सकती है। सवाल यह भी है कि अगर आधा हिस्सा नमाज अदा की जा रही है तो उस पूरे परिसर का स्वरूप क्या होगा।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष खुद इस्लामिक सिद्धांतों के खिलाफ जाकर इस जगह पर दावा कर रहा है। साक्ष्य जुटाने के उद्देश्य से भवन की दीवार/हिस्से को तोड़े जाने के बारे में पूछे जाने पर वकील ने कहा कि यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है कि क्या वह विध्वंस को पूजा स्थल अधिनियम के दायरे में मानता है। उसी के हिसाब से तोड़फोड़ की अनुमति दी या अस्वीकार की जाती है।
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