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जानें क्या है शिवसेना vs शिवसेना विवाद, स्पीकर के फैसले के बाद अब कैसा होगा शिंदे और उद्धव गुट का भविष्य?

नई दिल्ली: 10 जनवरी बुधवार को, महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने एकनाथ शिंदे की शिवसेना गुट को असली शिवसेना पार्टी घोषित करके 2022 में शुरू हुए सेना बनाम सेना युद्ध को अभी फिलहाल के लिए समाप्त कर दिया है। ये फैसला वैसे काफी लंबा था, क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष को इसे लगभग एक घंटे से ज्यादा समय तक पढ़ते हुए समझाना पड़ा। उद्धव दल ने इस फैसले को पूरी तरह नकारा और पूर्व महाराष्ट्र मंत्री आदित्य ठाकरे ने कहा कि उद्धव दल सुप्रीम कोर्ट में इस निर्णय का ज़रूर विरोध करेगा। पिछले साल 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह शिंदे सरकार को गिराने के लिए कोई निर्णय नहीं दे सकता, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। शीर्ष न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष से विधायकों के अयोग्यता पर निर्णय करने के लिए कहा था।

विवाद की जड़

• जून 2022 में एकनाथ शिंदे और लगभग 37 विधायकों ने शिव सेना के पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर दिया।

• इसका नतीजा ये हुआ कि शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई और बीजेपी के साथ मिलकर एकनाथ शिंदे नए मुख्यमंत्री बन गए।

• दोनों गुटों ने एक-दूसरे पर दल-बदल विरोधी कानून तोड़ने का आरोप लगाया और विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए स्पीकर के पास याचिकाएं दायर की।

महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर ने अपने निर्णय में क्या कहा? इन कुछ बिंदुओं में समझने की कोशिश करते हैं…

• असली शिवसेना को तय करने को लेकर पार्टी का संविधान ही सबसे महत्वपूर्ण होगा. स्पीकर का मानना है कि संविधान ही पार्टी की नेतृत्व संरचना तय करता है, इसलिए उसी के आधार पर असली शिवसेना का निर्धारण किया जाएगा।

• शिव सेना (अविभाजित) का संविधान 2018 में संशोधित हुआ था, लेकिन यह चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में नहीं था। इसलिए, भारतीय चुनाव आयोग के पास शिवसेना के 1999 के संविधान को ही वैध माना गया।

• 2018 में पार्टी का कोई संगठनात्मक चुनाव नहीं हुआ था।

• 2018 की नेतृत्व संरचना में, पक्ष प्रमुख को सबसे उच्च पद के रूप में उल्लेखित किया गया है, लेकिन यह संविधान के साथ मेल नहीं खाता था।

• स्पीकर ने कहा कि 1999 का शिवसेना संविधान ही मान्य है, जिसके मुताबिक पार्टी का सर्वोच्च निकाय राष्ट्रीय कार्यकारिणी है, ना कि पक्ष प्रमुख।

• शिवसेना के पार्टी संविधान के मुताबिक पार्टी प्रमुख (पक्षप्रमुख) पूरी तरह सर्वशक्तिमान नहीं है और उसे भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले राष्ट्रीय कार्यकारिणी से सलाह लेना अनिवार्य है।

• इसके अनुसार, उद्धव ठाकरे के पास एकनाथ शिंदे को विधायक दल के प्रमुख पद से हटाने का कोई अधिकार नहीं था। जिससे यह माना जा सकता है कि ठाकरे का फैसला पार्टी का निर्णय नहीं था।

• नार्वेकर ने कहा कि जब किसी पार्टी में विभाजन होता है, तो दोनों पक्ष खुद को असली पार्टी बताते हैं। उन्होंने कहा, ऐसे मामलों में, विधायकों का बहुमत ही सब कुछ तय करता है। जून 2022 में जब शिवसेना का विभाजन हुआ, तब शिंदे गुट के पास 54 में से 37 विधायक थे, जोकि स्पष्ट बहुमत है।

• उद्धव फैक्शन ने दावा किया कि शिंदे फैक्शन ने भाजपा के साथ मिलकर कार्य किया, लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई सबूत नहीं प्रदान किया।

• महाराष्ट्र विधनसभा स्पीकर नार्वेकर ने अपने फैसले में बताया कि, उद्धव गुट ने आरोप लगाया कि शिंदे गुट ने बीजेपी के साथ मिलकर पार्टी विरोधी गतिविधियां की हैं। हालांकि, उन्होंने इसके लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किए। इसलिए बिना सबूत के ऐसे गंभीर आरोप लगाना स्वीकार नहीं किया जा सकता।

• उद्धव गुट ने दावा किया कि शिंदे गुट असंपर्क में चला गया। लेकिन उद्धव गुट के दो नेता गुवाहाटी में शिंदे और अन्य विधायकों से मिले और जिसके चलते असंपर्क में रहने का कारण अयोग्यता का कारण नहीं है।

दोनों गुटों पर क्या असर पड़ सकता है?

• शिंदे गुट: स्पीकर के फैसले से शिंदे गुट को मजबूती मिली है। वह अब शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न वो इस्तेमाल कर सकेंगे। इससे उनकी सरकार का स्थायित्व भी बढ़ सकता है।

• उद्धव ठाकरे गुट: स्पीकर के फैसले से उद्धव ठाकरे गुट को झटका तो ज़रूर लगा होगा। क्योंकि उन्हें अब पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न नहीं मिलेंगे। हालांकि, वह अभी भी विधानसभा में विपक्षी दल के रूप में काम करते रहेंगे।

भविष्य में अनुमान

• उद्धव ठाकरे गुट इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकता है।

• विवाद अभी खत्म होता हुआ लग नहीं रहा है और आगे इसको लेकर कानूनी लड़ाई जारी रहने की संभावना है।

• आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर भी इस विवाद का बड़ा असर पड़ सकता है।

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Vaibhav Mishra

असिस्टेंट प्रोड्यूसर- इनखबर | राजनीति और विदेश के मामलों पर लिखने/बोलने का काम | IIMT कॉलेज- नोएडा से पत्रकारिता की पढ़ाई | जन्मभूमि- अयोध्या, कर्मभूमि- दिल्ली

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