जेपी ने अपनी आँखों के सामने जनता पार्टी का विघटन देखा. सरकार गिर गयी. कांग्रेसियों की बांछें खिल गयीं, पूरे देश में उन्होंने माहौल बनाया कि सरकार चलाने केवल कांग्रेस को आता है. इधर अटल जी जानते थे कि जेपी के लिए ये सदमा वैसा ही है जैसा एक बाप के लिए उसके बेटे की मौत….पर अटल जी चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे. अटल जी को यही बात रह रह के खाती थी. इस बात ने अटल जी के दिल में वो घाव कर दिया था जो जेपी की मृत्यु के बाद और भी गहरा हो गया.
अटलजी को इस बात का भी दुःख था जी जेपी के साथ साथ उन्होंने गांधीजी की समाधी पर शपथ लेकर पूरी न कर उनके साथ भी छल किया है तो उन्होंने एक बार ये कविता लिखकर दोनों से ही माफी मांग ली-
क्षमा करो बापू ! तुम हमको,
वचन भंग के हम अपराधी ।
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी ।
जयप्रकाशजी ! रखो भरोसा,
टूटे सपनो को जोड़ेंगे ।
चिताभस्म की चिंगारी से,
अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे ।
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