नई दिल्लीः देश में पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों और महंगाई के मुद्दे पर बीते सोमवार को कांग्रेस ने ‘भारत बंद’ बुलाया था. बंद को 21 राजनीतिक दलों ने समर्थन दिया. कई राज्यों में हिंसक घटनाएं भी सामने आईं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दिल्ली के रामलीला मैदान से मोदी सरकार को ललकार रहे थे तो केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद बिहार के जहानाबाद में कथित तौर पर जाम में फंसने से एक 2 साल की मासूम की मौत का जिम्मेदार कांग्रेस को ठहरा रहे थे. गौर किया जाए तो पिछले 4 वर्षों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों ने हकीकत में आसमान छू लिया है. मंगलवार शाम से आंध्र प्रदेश में पेट्रोल-डीजल पर 2 रुपये (वैट) कम हो जाएंगे. चुनावी साल में राजस्थान सरकार ने भी टैक्स (4 फीसदी) में कटौती कर जनता को फौरी तौर पर राहत देने की कोशिश की है लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार देश को राहत देने के मूड में बिल्कुल नजर नहीं आ रही है. ये हैं वो 10 कारण जिनकी वजह से फिलहाल नहीं घट सकते पेट्रोल-डीजल के दाम.
1- दरअसल केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें बाजार के हिसाब से तय हो रही हैं. कच्चे तेल की घटती-बढ़ती कीमतों के आधार पर पेट्रोल-डीजल की कीमतें तय की जाती हैं, लिहाजा फिलहाल के लिए तो एक्साइज ड्यूटी में कटौती नहीं की जाएगी.
2- ऐसे में सवाल उठता है कि पेट्रोल-डीजल के आसामान छूते दामों पर सरकार जनता को राहत देने के मूड में क्यों नहीं है. गौरतलब है कि पेट्रोल-डीजल से होने वाली कमाई केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व का बड़ा स्त्रोत होती है.
3- इसमें लगने वाले टैक्स को कम करने का मतलब है कि सरकार के राजकोष को बड़ा नुकसान होना. पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी से जहां 2016-17 में केंद्र सरकार को 2.42 लाख करोड़ रुपये मिले थे, वहीं 2017-18 में 2.29 लाख करोड़ रुपये.
4- वर्तमान में सरकार द्वारा पेट्रोल पर 19.48 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 15.33 प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूली जाती है. केंद्र सरकार ने नवंबर 2014 से जनवरी 2016 तक एक्साइज ड्यूटी को 9 बार बढ़ाया है. हालांकि पिछले साल अक्टूबर में सरकार ने इसे प्रति लीटर 2 रुपये कम भी किया था.
5- क्रूड पेट्रोलियम पर 20 फीसदी तेल उद्योग विकास उपकर और 50 रुपये प्रति मीट्रिक टन राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क (एनसीसीडी) लगाया जाता है. कच्चे तेल पर कोई सीमा शुल्क नहीं है लेकिन पेट्रोल और डीजल पर 2.5 फीसदी सीमा शुल्क वसूला जाता है.
6- हर राज्य में पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर अलग-अलग सेल्स टैक्स अथवा वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) वसूला जाता है. यही वजह है कि सभी तरह के टैक्स का गुणा-भाग कर राज्यों के राजस्व में पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम उनके वित्तीय लाभ को बढ़ाने में मदद करते हैं.
7- गणना के आधार पर 2016-17 में सामान्य तौर पर राज्यों ने पेट्रोल पदार्थों पर सेल्स टैक्स/वैट से 1.66 लाख करोड़ रुपये कमाए थे. 2017-18 में तेल के दाम मामूली कटौती के बाद लगातार बढ़ते ही रहे और इससे सरकार का लाभ 1.66 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 1.84 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
8- पेट्रोल-डीजल की कीमतों से बतौर टैक्स कमाई करने वाले राज्य में सबसे ऊपर महाराष्ट्र है. तेल के खेल में 2017-18 में महाराष्ट्र सरकार को 25,611 करोड़ रुपये का लाभ हुआ था. इसके बाद दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश रहा.
9- 2017-18 में यूपी सरकार के वित्तीय कोष में पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाले टैक्स से 17,420 करोड़ रुपये पहुंचे. इसके बाद तमिलनाडु सरकार के खाते में 15,507 करोड़ रुपये, गुजरात के खाते में 14,852 करोड़ रुपये और कर्नाटक को 13,307 करोड़ रुपये का लाभ हुआ.
10- विपक्ष लगातार पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग कर रहा है. केंद्र सरकार के सूत्रों की मानें तो इसकी कीमतों को जीएसटी के दायरे में लाने के बाद भी जनता को कोई बड़ी राहत नहीं मिलेगी. जीएसटी परिषद के सदस्य सुशील कुमार मोदी ने हाल ही में कहा कि जीएसटी के तहत पेट्रोल और डीजल लाने से कीमतों पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि अगर ऐसा होता है तो राज्य अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए इस पर अतिरिक्त टैक्स लगाएंगे और इसके दाम फिर उसी स्थिति पर पहुंच जाएंगे.
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