नई दिल्ली: बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम फैसला सुनाया है.कोर्ट ने कहा कि सरकार मनमाने ढंग से एक्शन नहीं कर सकती है. सरकार को नोटिस देकर बताना होगा कि घर कैसे अवैध है. इसकी जानकारी जिला प्रशासन को भी दी जाए. यदि अवैध तरीके से तोड़ा गया है तो मुआवजा दिया जाए और सरकारी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है. किसी के घर को केवल इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता है कि वह किसी आपराधिक मामले में आरोपी है या दोषी है. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला संविधान के अनुच्छेद-142 के अंतर्गत सुनाया. आइए जानते हैं क्या है अनुच्छेद 142
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 कोर्ट को विवेकाधीन शक्ति देता है. आसान भाषा में इसे समझें तो जिन मामलों में अभी तक कानून नहीं बन पाया है उन मामलों में न्याय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला अनुच्छेद 142 के तहत सुना सकता है. केवल बुलडोजर एक्शन को लेकर ही नहीं, इससे पहले राम मदिंर का फैसला भी अनुच्छेद 142 के तहत लिया गया था. वहीं तलाक के कुछ खास मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 को आधार बनाते हुए अपना फैसला सुनाया था.
90 के दशक से अभी तक कई ऐसे मामले सामने आये है. संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्ति दी गई है. बता दें जब भी अनुच्छेद 142 को आधार बनाकर फैसला सुनाया जाता है तो इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उस फैसले से किसी को कोई नुकसान न हो. अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को दो पक्षों के बीच पूर्ण न्याय करने की विशेष शक्ति प्रदान करता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद का भी फैसला अनुच्छेद 142 के तहत सुनाया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सबूतों को देखते हुए 2.77 एकड़ विवादित जमीन मंदिर को दी जाती है. इसके साथ ही अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए मस्जिद के लिए भी 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था.कोर्ट ने कहा, मुसलमानों ने मस्जिद नहीं छोड़ी थी और अगर इस ढांचे से वंचित मुसलमानों के अधिकारों पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये न्याय नहीं होगा और यह एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए कानून का शासन नहीं होगा.
कोर्ट ने इस मामले में अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया. बता दें अनुच्छेद 142 के अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा को मंदिर बनाने वाले ट्रस्ट में शामिल करने का आदेश सुनाया. संविधान के अनुच्छेद 142 में कोर्ट को इस बात का अधिकार मिला हुआ है. वह किसी भी मामले में पूरे न्याय के लिए कोई भी जरूरी आदेश दे सकता है.
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