सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट में किए गए बदलाव के खिलाफ देश भर में बवाल मचा हुआ है. दलित संगठनों द्वारा सोमवार को बुलाए गए 'भारत बंद' के दौरान कई राज्यों में वह हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं. मध्य प्रदेश में अभी तक 4 लोग मारे गए और दर्जनों लोग घायल हुए हैं. कई राज्यों में तोड़फोड़, आगजनी, लाठीचार्ज, गोलीबारी की खबरें मिल रही हैं. जानिए, SC/ST एक्ट में किन बदलावों पर देश में बवाल मचा हुआ है.
नई दिल्लीः एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए बदलाव के खिलाफ देश भर में दलित संगठनों ने सोमवार को भारत बंद बुलाया. उत्तर भारत के कई राज्यों से हिंसक घटनाओं की खबरें मिल रही हैं. तोड़फोड़, पथराव, लाठीचार्ज, आगजनी, गोलीबारी और कर्फ्यू की खबरें हर ओर से मिल रही हैं. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लेकर केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. आइए जानते हैं कि एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए बदलावों के बारे में और नई गाइडलाइन में ऐसा क्या है, जिसकी वजह से देश में बवाल मचा हुआ है.
महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी-एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की थी, जिसके तहत अदालत ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अधिनियम-1989 के दुरुपयोग पर बंदिश लगाने के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इसमें कहा गया कि एससी-एसटी एक्ट के तहत अब केस दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी.
SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज होने के बाद डीएसपी स्तर का अधिकारी पहले आरोपों की जांच करेगा. आरोप सही पाए जाने की दिशा में ही आगे कार्रवाई की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए.के. गोयल और यू.यू. ललित की बेंच ने नई गाइडलाइन जारी करते हुए कहा कि संसद में इसपर कानून बनाते समय इस बात पर ध्यान नहीं गया होगा कि इसका दुरुपयोग भी हो सकता है.
कानून में नए बदलाव के तहत वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) की लिखित अनुमति के बाद ही आम नागरिकों की गिरफ्तारी हो सकेगी. सरकारी कर्मचारियों को भी इस नई गाइडलाइन के तहत रखा गया है. मतलब अगर कोई सरकारी कर्मचारी अधिनियम का दुरूपयोग करता है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए विभागीय अधिकारी की अनुमति जरूरी होगी. अगर कोई अधिकारी इस नई गाइडलाइन का उल्लंघन करता है तो उसे विभागीय कार्रवाई के साथ कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता है.
कोर्ट की नई गाइडलाइन में आरोपी की जमानत को लेकर भी बदलाव किए गए हैं. एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी की अग्रिम जमानत पर मजिस्ट्रेट विचार करेंगे और अपने विवेक से जमानत मंजूर और नामंजूर करेंगे. कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी है. यानी गैर-जमानती और जमानती के बीच भी पेंच फंसा हुआ है. दलित संगठन इस बात का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. बेंच ने देश की सभी निचली अदालतों के मजिस्ट्रेट को भी गाइडलाइन अपनाने के निर्देश दिए हैं.
SC/ST एक्ट के तहत क्या होता था अब तक?
अभी तक एससी/एसटी एक्ट में यह होता था कि अगर कोई शख्स किसी दलित व्यक्ति को जातिसूचक शब्द कहकर गाली-गलौज करता है तो इसमें तुरंत FIR दर्ज कर आरोपी की गिरफ्तारी की जा सकती थी. ऐसे मामलों में कोर्ट अग्रिम जमानत नहीं देती थी. जांच के बाद हाई कोर्ट द्वारा ही जमानत दी जाती थी. इन मामलों की जांच अब तक इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर ही करते थे लेकिन अब इस तरह के मामलों की जांच एसएसपी लेवल पर होगी. बता दें कि एनसीआरबी 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में जातिसूचक गाली-गलौज के 11,060 मामलों की शिकायतें सामने आई थीं. दर्ज शिकायतों में से 935 झूठी पाई गईं. अदालत ने इसके दुरुपयोग को देखते ही नई गाइडलाइन जारी की है.
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