गांधीजी ऐसे तो कांग्रेस में असहयोग आंदोलन से थोड़ा पहले सक्रिय हुए थे। उससे पहले चम्पारन, खेड़ा आदि सत्याग्रह भी कर चुके थे। लेकिन कांग्रेस के बारे में वो दक्षिण अफ्रीका के दिनों से ही बात करते रहते थे। 1896 में तीन साल दक्षिण अफ्रीका में रहने के बाद गांधीजी ने 6 महीने की छुट्टी ली और भारत आ गए। कोलकाता उतरे, वहां से मुंबई के रास्ते में प्रयाग (इलाहाबाद) में 45 मिनट के हॉल्ट के दौरान उतरे तो ट्रेन छूट गई और फिर वो संगम स्नान के बाद ही शहर से गए। महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले
नई दिल्ली. गांधीजी ऐसे तो कांग्रेस में असहयोग आंदोलन से थोड़ा पहले सक्रिय हुए थे। उससे पहले चम्पारन, खेड़ा आदि सत्याग्रह भी कर चुके थे। लेकिन कांग्रेस के बारे में वो दक्षिण अफ्रीका के दिनों से ही बात करते रहते थे। 1896 में तीन साल दक्षिण अफ्रीका में रहने के बाद गांधीजी ने 6 महीने की छुट्टी ली और भारत आ गए। कोलकाता उतरे, वहां से मुंबई के रास्ते में प्रयाग (इलाहाबाद) में 45 मिनट के हॉल्ट के दौरान उतरे तो ट्रेन छूट गई और फिर वो संगम स्नान के बाद ही शहर से गए। गंगा को लेकर उनके मन में इतनी ज्यादा श्रद्धा थी कि जिस व्यक्ति वो अपना राजनीतिक गुरु मानते थे, उसको गुरु मानने की वजह ही थी गंगा जैसा उनका व्यक्तित्व और ये हस्ती थी गोपाल कृष्ण गोखले।
दरअसल उस वक्त कांग्रेस में नरम दल और गरम दल दो खेमे बनते जा रहे थे। गांधीजी पहले राजकोट पहुंचे, फिर वापस मुंबई आए और फीरोज शाह मेहता ने उनके लिए मुंबई में एक सभा रखी। इस तरह गांधीजी का देश में ये पहला सार्वजनिक भाषण था। इसके चलते कांग्रेस नेताओं में उनकी चर्चा हो गई। अब गांधीजी पूना पहुंचे, जो उन दिनों कांग्रेस का गढ़ था। गांधीजी पहले गरम दल के मुखिया लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से मिले। तिलक ने उनसे कहा, ”सब पक्षों की मदद लेने का आपका विचार बिलकुल ठीक है, आपके मामले में कोई मतभेद नहीं हो सकता.. मैं आपकी पूरी मदद करना चाहता हूं, आप प्रो. गोखले से मिलेंगे ही, मेरे पास जब भी आना चाहें निसंकोच आइए।”
इस मुलाकात में तिलक ने गांधीजी को एक तटस्थ सभापति की जरूरत भी बताई और किसी प्रो. भंडाकरकर का नाम भी दिया। गांधीजी ने इस मुलाकात के बारे में लिखा है कि उनसे मिलकर पता चला कि वो इतने लोकप्रिय क्यों हैं। उसके बाद गांधीजी गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने पहुंचे, वो फर्ग्युसन कॉलेज में मिले। गांधीजी ने अपनी बायोग्राफी ‘माई एक्सपेरीमेंट्स विद ट्रुथ’ में लिखा है कि उन्होंने पहली ही मुलाकात में मुझे अपना बना लिया। ऐसा लगा कि हम पहले भी मिल चुके हैं।
गांधीजी ने आगे लिखा है कि, ‘’सर फीरोजशाह मेहता मुझे हिमालय जैसे, लोकमान्य समुद्र जैसे और गोखले गंगा जैसे लगे। गंगा में मैं नहा सकता हूं। हिमालय पर चढ़ा नहीं जा सकता, समुद्र में डूबने का डर है। गंगा की गोद में तो खेला जा सकता था। उसमें डोंगियां लेकर सैर की जा सकती थी। गांधीजी ने इस मुलाकात और गोखले के बारे में आगे लिखा है कि, ”गोखले ने मेरी बारीकी से जांच की, उसी तरह जिस तरह स्कूल में भर्ती होते समय किसी विद्यार्थी की की जाती है। उन्होंने मुझे बताया कि मैं किस किस से और कैसे मिलूं और मेरा भाषण देखने को मांगा (जो मुंबई में दिया था)। मुझे कॉलेज की व्यवस्था दिखाई। जब जरूरत हो तब मिलने को कहा। डा. भंडारकर के जवाब की खबर देने को कहा और मुझे विदा किया।”
गांधीजी तिलक के समुद्र जैसे व्यक्तित्व के आगे खुद को जितना छोटा समझ रहे थे, गोखले के आगे वो उतना ही मित्रवत पा रहे थे। तभी तो गोखले से उनके ये रिश्ते हमेशा बने रहे। भारत से सम्बंधित हर मुद्दे पर जब तक भी गोखले जिंदा रहे, गांधीजी उनसे सलाह लेते रहे, उनकी बात मानते रहे। हालांकि कुछ लोग ये भी कहते हैं कि खुद गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ उतरने का काफी बाद में मूड बनाया था, क्वीन विक्टोरिया के स्वागत कार्यक्रम की समिति में रहे, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की सेना में भर्ती के लिए नौजवानों को प्रेरित करते रहे, तो उन्हें तिलक जैसा स्वराज की बात करने वाला गरम दलीय नेता कैसे पसंद आता। कांग्रेस ने भी तो पूर्ण स्वराज की मांग स्थापना के 45 साल बाद 1930 में रखी थी।
हालांकि गांधीजी का तरीका लम्बा जरूर था, लेकिन देश की आजादी को सुनिश्चित करने में सबसे मारक वही साबित हुआ और गांधीजी को उस रास्ते पर चलने के लिए रास्ता दिखाने का काम उनके राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले ने ही किया था। गांधीजी ने भी अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि, ”राजनीति के क्षेत्र में जो स्थान गोखले ने जीते-जी मेरे हृदय में प्राप्त किया और स्वर्गवास के बाद आज भी जो स्थान उन्हें प्राप्त है, वह और कोई पा न सका।” ये अलग बात है कि आज की पीढ़ी गोखले और गांधीजी के रिश्तों के बारे में इतना नहीं जानती।
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