नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पैसिव यूथेनेशिया और लिविंग विल को कानूनी मान्यता दे दी है. इसके अलावा कोर्ट ने लिविंग विल पर भी गाइडलाइन जारी की है. अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये पैसिव यूथेनेशिया है क्या? तो जानते हैं इसके बारे में और कोर्ट ने इस संदर्भ में क्या कहा है? वहीं आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर डॉक्टरों का बोर्ड मरीज की बीमारी को लाइलाज घोषित कर देता है तो उसे इच्छामृत्यु दी जा सकती है और मरीज को लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाया जा सकता है.
पैसिव यूथेनेशिया का अर्थ किसी मरीज से ऐसे मेडिकल उपचार को जानबूझकर हटा लेना होता है, जो उसके जिंदा रहने के लिए जरूरी होता है. यदि मरीज को किडनी डायलिसिस की जरूरत है तो डॉक्टर डायलिसिस मशीन हटा लेते हैं, जिससे जल्द ही मरीज की मौत हो जाती है. यह ‘एक्टिव यूथेनेशिया’ या ‘यूथेनेशिया’ से अलग होता है.
तकनीकी आधार पर इच्छामृत्यु को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है. पहला सक्रिय इच्छामृत्यु और दूसरी निष्क्रिय इच्छामृत्यु. लाइलाज बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के जीवन का अंत डॉक्टर की मदद से करना जैसा कदम उठाकर किया जा सकता है, ऐसी स्थिति को सक्रिय इच्छामृत्यु कहते हैं. दूसरी लाइलाज बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति काफी लंबे समय से कोमा में हो. ऐसी में रिश्तेदारों की सहमति से डॉक्टर उसके जीवनरक्षक उपकरण बंद कर देते हैं. ऐसी स्थिति को निष्क्रिय इच्छामृत्यु कहते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त इच्छा मृत्यु को दी मंजूरी लेकिन क्या होती लिविंग विल, जानिए
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