नई दिल्ली: गोपाल चंद्र प्रहराज का जन्म 9 सितम्बर 1874 में उड़ीसा के कटक जिले के अंतर्गत सिद्धेश्वरपुर गाँव में मध्यवित्त परिवार में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1891 में मैट्रिकुलेशन और वर्ष 1899 में बी.ए. की परीक्षा पास की थी। बाद में वकालत पास किया और सारा जीवन कटक में वकील के रूप में बिताया। […]
नई दिल्ली: गोपाल चंद्र प्रहराज का जन्म 9 सितम्बर 1874 में उड़ीसा के कटक जिले के अंतर्गत सिद्धेश्वरपुर गाँव में मध्यवित्त परिवार में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1891 में मैट्रिकुलेशन और वर्ष 1899 में बी.ए. की परीक्षा पास की थी। बाद में वकालत पास किया और सारा जीवन कटक में वकील के रूप में बिताया। वकालत पास करने से पूर्व कलकत्ता में इंजीनियरिंग की भी पढ़ाई करते थे।
साहित्यिक रूप में उन्होंने जिस श्रेष्ठ कृति की तैयार किया है वह व्यंग्य साहित्य में सम्मिलित है। जाति और समाज को नाना दोषदुर्बलताओं से बचाकर स्वस्थ जीवन का निर्माण करने के लिए वे अधिक चुभनेवाले लेख लिखा करते थे। उसमें व्यंगभाव जितना स्पष्ट रहता था उतना ही अधिक सरल उसकी भाषा रहती थी। फकीरमोहन के अलावा वे एकमात्र उड़िया लेखक हैं जो अपने लेखों में गाँव की भाषा को शामिलकर उसे विशेष सम्मानित और जनप्रिय बना सके।
1. दुनिआर हालचाल
2. आम घरर हालचाल
3. ननांक बस्तानि
4. बाइननांक बुजुलि
5. मियां साहेब का रोज़नामचा
6. जेजेबापांक टुणुमुणि
7. दुनिआर रीति
गोपाल चंद्र प्रहराज अपने भाषाकोश को लेकर केवल उड़ीसा में ही नहीं बल्कि संसार में सुविदित हैं। यह विशाल ग्रंथ 7 खंडों में बांटा हुआ है। प्रत्येक खंड में डेढ़ हजार पृष्ठ हैं। इस भाषाकोश का नाम मयूरभंज के स्वनामधन्य राजा पूर्णचंद्र के नाम पर रखा गया है। जिसका नाम पूर्णचंद ओड़िया भाषाकोश है. उन्होंने सर्वप्रथम वर्ष 1913 में इसकी योजना बनाई और वर्ष 1940 में प्रकाशन कर दिया। उसमें शब्दों की संख्या 1,84,000 है। इस पुस्तक की 5 हजार प्रतियों के मुद्रण के लिए उस समय 1,42,000 रुपए लगे थे।
वर्ष 1945 में उनकी मृत्यु बड़े ही करुण रूप में हुई। कहा जाता है कि किसी के द्वारा विष दिए जाने से उनकी मृत्यु हुई थी। किंतु उड़िया निवासी उन्हें कदापि भूल नहीं सकते। कटक में गोपाल चंद्र प्रहराज जिस गली में रहते थे उसको अब भाषाकोश लेन के नाम से जाना जाता है। उनके ग्राम का हाई स्कूल उन्हीं के नामानुसार “गोपाल स्मृति विद्यापीठ” नाम से प्रसिद्ध है।
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