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फांसी से पहले भगत सिंह की जिंदगी के उन चंद घंटो की कहानी

शहीद भगत सिंह की याद में आज 23 मार्च को पूरे देश में शहादत दिवस मनाया जा रहा हैं. देश की आजादी के इतिहास में भगत सिंह की कुर्बानी को देश का हर बच्चा जनता हैं. 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी. लेकिन भगत सिंह और उनके दोनों दोस्तों को फांसी 24 मार्च, 1931 की सुबह देने का तय हुआ था. शहादत दिवस पर जानते है उनके जीवन के आखिरी समय के बारे में

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  • March 23, 2018 12:06 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. शहीद भगत सिंह की याद में आज पूरे देश में शहादत दिवस मनाया जा रहा हैं. देश की आजादी के लिए भगत सिंह की कुर्बानी को कोई भी नहीं भूल सकता हैं. 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी.लेकिन भगत सिंह और उनके दोनों दोस्तों को फांसी 24 मार्च, 1931 की सूबह देने का तय हुआ था. भगत सिंह और उनके दोस्तों की फांसी की तारीख पता चलने से जेल के बाहर लोग इकट्टा होना शुरू हो गए थे, जिसके कारण अंग्रेज सरकार डर गई और तय तारीख से एक दिन पहले ही फांसी देने का फैसला किया.

जिस शाम भगत सिंह को फांसी देनी थी उस शाम 4 बजे वॉर्डने चरत सिंह ने सभी कैदियों को उनके कोठरियों में चले जाने का निर्देश दिया. यह सुनते ही सभी कैदियों को अजीब लगा तभी जेल का नाई हर कोठरी के सामने फुसफुसाते हुए गुजार की आज रात भगत सिंह और उनके दोस्तों को फांसी दी जाएगी. सभी कैदियों ने नाई से कहा की हमे भगत सिंह का कोई भी समान दे दो जैसे उनकी कंघी, घड़ी, किताबें आदि ताकि हम अपने वंश को बता सके कि वह महान भगत सिंह के साथ जल में बंद थे.

उस दिन जेल में भगत सिंह से उनके वकील मिलने आए थे. भगत सिंह ने उनसे किताब मंगवाई थी पढ़ने के लिए जैसे ही वह उनसे मिलने आए उन्होंने किताब पढ़नी शुरू कर दी और अपने वकील को कहा की नेहरू जी मेरा धन्यवाद कहना जो उन्होंने मेरे केस में इतनी दिलचस्पी ली. फिर उनका वकील उनके दोस्तों से मिलने चले गए.भगत सिंह जेल की छोटी सी कोठरी में रह रहे थें. जिसमें वह बहुत मुश्किल से लैट पाते थे.भगत सिंह ने अपने दोस्तों से उस दिन रसगुल्ले की फरमाईश की थी. उनके दोस्तों ने भगत सिंह के लिए रसगुल्लों का इंतजाम किया. भगत सिंह ने बहुत ही खुशी के साथ रसगुल्ले खाए.

उस दिन भगत सिंह और उनके दोस्त काफी खुश और शांत थे. शाम के समय जेल आधिकारियों ने भगतसिंह और उनके दोस्तों को कोठिरियों से बाहर निकला और फांसी देने के लिए ले गए. भगत सिंह अपने दोनों दोस्तों के गले लगे, और गीत गाते हुए आगे बढ़े ‘कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगे सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ इसके बाद तीनों ने का वजन किया गया उसके बाद तीनों ने स्नान किया और काले कपड़े पहने. फांसी लगाने से पहले तीनो दोस्तों ने जोर जोर से इंकलाब जिंदाबाद और हिंदुस्तान आजाद हो का नारा लगाया. जिसके बाद जेल की कोठरीयों से भी इंकलाब जिंदाबाद का नारा सुनाई देने लगा. उसके बाद तीनों का फांसी दी गई.

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