नई दिल्ली. 21वीं सदी में हर क्षेत्र में कई बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं. हम मशीनों से घिरते जा रहे हैं. जहां देश विदेश में नई नई तकनीकें विकसित हो रही हैं वहीं इंसान के शरीर और मस्तिष्क का विकास भी समय से पहले और तेजी से होता दिखाई पड़ रहा है. एक समय था जब दो साल का बच्चा ठीक से बोल भी नहीं पाता था, चीजों की इतनी समझ उसमें पैदा नहीं हो पाती थी कि वह किसी मशीन को हैंडल कर सके. लेकिन आज उसी उम्र के बच्चे मोबाईल चलाने से लेकर यू ट्यूब में तमाम तरह से वीडियो देखने की समझ रख रहे हैं. ये बच्चे किंडरगार्टन पहुंचने से पहले यूट्यूब की ही मदद से काफी कुछ सीख ले रहे हैं जैसे रंगों के नाम या हिंदी- अंग्रेजी के अक्षर. बच्चे की इस तेजी को देखकर जहां मां बाप को काफी खुशी होती है वहीं मोबाइल जैसी चीज पर बच्चे का हद से ज्यादा झुकाव डरा भी देता है कि कही वह खेल कूद या समाज से दूर न हो जाए.
ऐसे में बच्चों द्वारा स्मार्टफोन के प्रयोग को सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ना बोलें या नकारात्मक, ये समझना मुश्किल हो जाता है. दरअसल बच्चे जब शुरूआत से ही टीवी, मोबाइल या यूट्यूब जैसी चीजों के आदि हो जाते हैं तो अपनी दुनिया को वहीं तक सीमित रखकर वे कहीं न कहीं समाज से कटना सीख लेते हैं. इससे उनके शारीरिक विकास पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. हालांकि युवाओं में भी इस तरह की आदतें देखने को मिल रही हैं जहां लोग दोस्तों और परिवार से अधिक समय अपने मोबाइल के साथ बिताने लगे हैं. मोबाइल और सोशल मीडिया की दुनिया लोगों के दिल दिमाग पर हावी होती जा रही है. आलम ये है कि आज पल भर के लिए भी किसी को मोबाइल से दूर रहना पड़े तो मानो वो कई चीजों को लेकर असहाय हो महसूस करने लगता है.
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