नई दिल्ली। असम पुलिस और दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की एक टीम द्वारा पूर्वोत्तर राज्य में स्वायत्त परिषद घोटाले (autonomous council scam) में 65 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में प्रसिद्ध वास्तु विशेषज्ञ खुशदीप बंसल (Khushdeep Bansal) और उनके भाई को गिरफ्तार कर लिया है। साथ ही इस संबंध में पेश हुई रिपोर्ट के […]
नई दिल्ली। असम पुलिस और दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की एक टीम द्वारा पूर्वोत्तर राज्य में स्वायत्त परिषद घोटाले (autonomous council scam) में 65 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में प्रसिद्ध वास्तु विशेषज्ञ खुशदीप बंसल (Khushdeep Bansal) और उनके भाई को गिरफ्तार कर लिया है। साथ ही इस संबंध में पेश हुई रिपोर्ट के अनुसार, असम पुलिस ने दिल्ली पुलिस प्रमुख संजय अरोड़ा से संपर्क किया था, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में सैनिक फार्म के निवासी बंसल को गिरफ्तार करने में उनकी मदद मांगी थी। अब इसी के मद्देनजर यह कार्रवाई की गई है।
दरअसल, 1997 में वास्तु विशेषज्ञ खुशदीप बंसल (Khushdeep Bansal) उस समय सुर्खियों में आए जब, उन्होंने ये दावा किया कि संसद भवन की लाइब्रेरी में “वास्तुशिल्प दोष” थे, जिसके कारण सरकारें गिरीं। अब करीब 27 साल बाद, खुशदीप बंसल का नाम फिर से चर्चा में है। वो भी 65 करोड़ रुपये की भारी धोखाधड़ी के मामले में।
इस मामले में सोमवार को असम पुलिस और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीम ने दिल्ली में खुशदीप बंसल और उनके भाई को गिरफ्तार किया। इस गिरफ्तारी में दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की काउंटर इंटेलिजेंस यूनिट (सीआई) शामिल रही। जिसके तुरंत बाद ही दोनों को असम ले जाया गया, जहां उन पर 65 करोड़ रुपये के स्वायत्त परिषद घोटाला करने का आरोप है। जानकारी के अनुसार, इस घोटाले में मध्य प्रदेश के एक कांग्रेस नेता का बेटा शामिल है।
बता दें कि दिल्ली में स्थित सबरवाल ट्रेडिंग कंपनी के मालिक कमल सबरवाल ने बंसल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। कथित तौर पर बंसल ने दिल्ली पुलिस को बताया कि उसने केवल एक व्यक्ति को कमल सबरवाल से मिलवाया था। इसके साथ ही, असम पुलिस का दावा है कि सभी आरोपियों ने व्यापक घोटाले को अंजाम देने में सहयोग किया था जो कि अब सामने आ चुका है।
अपनी वास्तु कंसल्टेंसी के अलावा, बंसल (Khushdeep Bansal) विभिन्न राज्य सरकार की परियोजनाओं के सलाहकार और प्रतिष्ठित व्यवसायियों और उद्योगपतियों के रणनीतिक सलाहकार भी हैं। वहीं 1997 में, उन्होंने अपने किए गए दावे के लिए कुख्याति प्राप्त की थी कि संसद भवन पुस्तकालय के वास्तुशिल्प दोष सरकारी अस्थिरता का कारण बन रहे थे। उन्होंने बताया कि समाधान उनकी विशेषज्ञता में निहित था, जिसमें संसद और पुस्तकालय भवन के बीच तांबे के तारों को भूमिगत रखना शामिल था, इसमें “संतुलन बहाल” होता था और सरकारों को समय से पहले पतन का सामना किए बिना अपना कार्यकाल पूरा करने की अनुमति थी।
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