KCR meets stalin Federal Front: 23 मई को लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे से पहले गैर कांग्रेस-बीजेपी सरकार बनाने की सेटिंग शुरू

चेन्नई. लोकसभा चुनाव 2019 अपने आखिरी दौर की तरफ बढ़ चला है. अगले 10 दिनों में देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा इस पर तस्वीर साफ हो जाएगी. चुनाव के नतीजों से पहले दक्षिण भारत में गैर बीजेपी-कांग्रेस सरकार बनाने की कोशिशें तेज हो गई हैं. सोमवार को इसी कड़ी में तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के नेता और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने द्रविड़ मुनेत्र कणगम (DMK) प्रमुख एमके स्टालिन से मिलने उनके आवास पर पहुंचे. इस मुलाकात को चुनाव के बाद बीजेपी और कांग्रेस से अलग तीसरे मोर्चे की स्थापना की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर चुनाव की घोषणा के बाद से ही तीसरा मोर्चा बनाने के प्रयास में लगे हुए हैं. उन्होंने देश भर के उन तमाम नेताओं से मुलाकात की जो बीजेपी और कांग्रेस से इतर राजनीति में अहम किरदार हैं. हाल ही में चंद्रशेखर राव ने केरल के मुख्यमंत्री पिरनई विजयन से उनके आवास पर मुलाकात की थी.

दरअसल छह चरण के चुनावों के बाद कई राजनीतिक पंडित और चुनावी सर्वे ये संभावना जता रहे हैं कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाला एनडीए बहुमत से दूर रह सकता है. कांग्रेस की भी स्थिति सरकार बनाने लायक नहीं लगती. ऐसे में तीसरे मोर्चे की देश की अगली सरकार बनाने में अहम भूमिका हो सकती है. केसीआर ने इसी बात को समझते हुए सभी गैर कांग्रेसी और गैर बीजेपी नेताओं से मिलने का सिलसिला जारी रखा है. कांग्रेस के सहयोगी स्टालिन और विरोधी केसीआर की मुलाकात के मायने सियासी तौर पर काफी दिलचस्प हैं. स्टालिन की पार्टी डीएमके जहां लंबे समय से कांग्रेस की सहयोगी दल रही है.

स्टालिन के पिता और तमिलनाडु पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत करुणानिधि हमेशा कांग्रेस के साथ रहे हैं. इस बार भी तमिलनाडु में कांग्रेस और डीएमके साथ-साथ चुनाव लड़ रहे हैं. स्टालिन सीधे कांग्रेस के खिलाफ चले जाएंगे इसकी संभावना कम ही है. सूत्रों की माने तो केसीआर देश में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाना चाहते हैं जिसमें कांग्रेस और बीजेपी दोनों राष्ट्रीय पार्टियां शामिल न हों. वहीं स्टालिन के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने केसीआर को मनाने की कोशिश की कि राहुल गांधी की अगुवाई में तीसरे मोर्चे की सरकार बन सकती है. बताया जाता है कि इस मुलाकात में स्टालिन ने राहुल गांधी को अलगे प्रधानमंत्री के तौर पर तीसरे मोर्चे का नेता स्वीकार करने के लिए केसीआर से बात की. दूसरी तरफ कांग्रेस के मुखर विरोधी केसीआर इस बात पर सहमत होंगे इसकी कम ही संभावना दिखती है.

तीसरा मोर्चा: हकीकत या मुंगेरी लाल के हसीन सपने!
यह पहली बार नहीं है जब देश में तीसरे मोर्चे की कवायद शुरू हुई है. 2014 लोकसभा चुनावों में भी बड़े जोर-शोर के साथ तीसरे मोर्चे की घोषणा हुई थी. लेकिन चुनावों के बाद यह प्रयास सिफर ही रहा. इस बार भी कभी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो कभी ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने तीसरे मोर्चे का शिगुफा छेड़ा. अगर किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है तो निश्चित तौर पर केसीआर, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, जगन मोहन रेड्डी, अखिलेश यादव, मायावती और स्टालिन जैसे छोटी पार्टियों के नेताओं का कद बढ़ जाएगा. सरकार बनाने में इनकी निर्णायक भूमिका हो सकती है.

बिना करुणानिधि और जयललिता के तमिलनाडु
तमिलनाडु में 2014 लोकसभा चुनावों में दिवंगत मुख्यमंत्री AIDMK जयललिता ने शानदार प्रदर्शन किया था. इस बार तमिलनाडु के दोनों सियासी दिग्गजों- करुणानिधि और जयललिता का अवसान हो चुका है. इस बार उम्मीद जताई जा रही है कि तमिलनाडु में कांग्रेस-डीएमके गठबंधन का प्रदर्शन बेहतरीन हो सकता है. ऐसे में केसीआर किसी गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई नेता को छोड़ना नहीं चाहते हैं. उनकी मुलाकात एनडीए और यूपीए से अलग सभी दलों के नेताओं से हो चुकी है. 23 मई के बाद अगर बहुमत से पहले एनडीए और यूपीए थम जाती है तो तीसरे मोर्चे की गाड़ी रफ्तार पकड़ सकती है. तीसरे मोर्चे की सरकार उसी सूरत में बन सकती है जब दोनों राष्ट्रीय पार्टियां-बीजेपी और कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहे. कह सकते हैं जैसे-जैसे देश चुनाव परिणाम की तरफ बढ़ रहा है सियासी समीकरण भी तेज हो गए हैं. 23 मई को नतीजा कुछ भी हो उम्मीद तो हर मोर्चा लगाए बैठा है.

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Aanchal Pandey

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