कर्नाटक में सरकारी ठेकों में मुस्लिमों को 4 प्रतिशत आरक्षण देने पर बवाल मचा हुआ है. आज कर्नाटक विधानसभा से जो तस्वीरें सामने आई वो चौंकाने वाली थी. दरअसल, बीजेपी विधायक इस कोटे का विरोध कर रहे थे, इसे लेकर बीजेपी विधायकों को मार्शलों ने उठा-उठाकर बाहर फेंक दिया.
बेंगलुरु: कर्नाटक में सरकारी ठेकों में मुस्लिमों को 4% आरक्षण देने के फैसले को लेकर जबरदस्त हंगामा हुआ। विधानसभा में इस मुद्दे पर तीखी बहस के बीच बीजेपी विधायकों ने जोरदार विरोध किया, जिसके बाद सदन में अशांत माहौल बन गया। हालात ऐसे हो गए कि मार्शलों को हस्तक्षेप करना पड़ा और विरोध कर रहे विधायकों को सदन से बाहर कर दिया गया। हंगामे के बावजूद मुस्लिम समुदाय के लिए सरकारी ठेकों में 4% आरक्षण का विधेयक पारित हो गया। इसके बाद विधानसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।
हंगामे के कारण विधानसभा अध्यक्ष ने 18 बीजेपी विधायकों को निलंबित कर दिया। इन पर अनुशासनहीनता और स्पीकर के आदेशों की अवहेलना का आरोप लगा है। निलंबित होने वाले विधायकों में विपक्ष के मुख्य सचेतक डोड्डनगौड़ा एच. पाटिल, डॉ. अश्वथ नारायण सी.एन., एस.आर. विश्वनाथ, बी.ए. बसवराज, एम.आर. पाटिल, चन्नबसप्पा (चन्नी), बी. सुरेश गौड़ा, उमनाथ ए. कोट्यान, शरणु सलागर, डॉ. शैलेन्द्र बेलदले सहित अन्य नाम शामिल हैं।
निलंबन की अवधि में इन विधायकों पर कई प्रतिबंध लागू होंगे:
विधानसभा हॉल, लॉबी और गैलरी में प्रवेश नहीं कर सकेंगे।
किसी स्थायी समिति की बैठकों में भाग लेने की अनुमति नहीं होगी।
उनके नाम से विधानसभा एजेंडे में कोई विषय सूचीबद्ध नहीं किया जाएगा।
उनके निर्देशों को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
इस अवधि में वे समिति चुनावों में मतदान नहीं कर पाएंगे।
उन्हें दैनिक भत्तों से भी वंचित रखा जाएगा।
कर्नाटक सरकार ने हाल ही में कर्नाटक ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक प्रोक्योरमेंट्स (KTPP) अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दी थी। इस संशोधन के तहत 2 करोड़ रुपये तक के सिविल कार्यों और 1 करोड़ रुपये तक के वस्त्र/सेवाओं के ठेके मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षित किए गए हैं।
बीजेपी इस फैसले का विरोध कर रही है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि यह कदम असंवैधानिक है और सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि कांग्रेस सरकार को यह निर्णय तुरंत वापस लेना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर लिया गया फैसला है।
इस मुद्दे पर विधानसभा के अंदर और बाहर बवाल मचा हुआ है। बीजेपी इस फैसले के खिलाफ कानूनी और राजनीतिक मोर्चे पर लड़ाई लड़ने का मन बना रही है, जबकि कांग्रेस सरकार अपने फैसले को सही ठहराते हुए इसे सामाजिक न्याय की दिशा में उठाया गया कदम बता रही है।