बेंगलुरु। चुनाव आयोग ने आज कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा कर दी। 10 मई को राज्य में सभी विधानसभा सीटों पर मतदान होगा, इसके बाद 13 मई को नतीजे सामने आएंगे। विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद अब राज्य में राजनीतिक माहौल गरमा गया है। बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस समेत तमाम पार्टियों ने चुनावी प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस बीच आइए आपकों बताते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव परिणाम में बहुमत से दूर रहने के बाद भी कैसे बीजेपी ने अपनी सरकार बना ली और विधायकों की टूट के चलते कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को सत्ता से दूर जाना पड़ा।
बता दें कि, कर्नाटक में विधानसभा की 224 सीटें हैं। साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को अकेले दम पर पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ था। बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जिसनें 104 सीटें जीती थी। वहीं, तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस को 80 और जनता दल (सेक्युलर) को 37 सीटें मिली थी। चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन कर सरकार बना ली थी।
विधानसभा चुनाव के बाद बना कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन ज्यादा दिन तक सरकार नहीं चला सका। बीजेपी के ऑपरेशन लोटस में 2019 के मई महीने में कांग्रेस के कई विधायक टूट गए और भाजपा में शामिल हो गए, जिसके बाद सीएम एचडी कुमारस्वामी की सरकार के पास बहुमत नहीं बचा और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बाद में बीजेपी आलाकमान ने उम्र का हवाला देते हुए येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया।
कर्नाटक के अभी के चुनावी माहौल की बात करें तो राज्य की दोनों बड़ी पार्टी- बीजेपी और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। जहां, सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में 150 सीट जीतने का टारगेट रखा है, वहीं कांग्रेस पार्टी भी आगामी विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आने का दावा कर रही है। राज्य में राजनीतिक माहौल गर्म है और दोनों पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं का लगातार दौरा जारी है। प्रधानमंत्री मोदी पिछले 3 महीने में 7 बार कर्नाटक का दौरा कर चुके हैं। कांग्रेस की ओर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। इसके साथ ही राज्य की क्षेत्रीय पार्टी जनता दल (सेक्युलर) भी पूरे दमखम के साथ चुनाव प्रचार में जुटी है। जेडीएस के अस्तित्व पर बार-बार उठ रहे सवालों के बीच देवगौड़ा परिवार इस बार के विधानसभा चुनाव को ‘करो या मरो’ के तौर पर देख रहा है।
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