नई दिल्ली। पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल जंग (Kargil Wa) के दौरान देश के सैकड़ों जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देने में थोड़ा भी संकोच नहीं किया था। उन जवानों की वीरता और साहस के किस्से आज भी हर जगह सुनाई देते हैं।
आज पूरे भारत में कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाया जा रहा है। कारगिल विजय दिवस के मौके पर देश के लिए कुर्बानी देने वाले सैंकड़ो भारत मां के सपूतों को उनके शौर्य के लिए याद किया जा रहा है। बता दें कि हर वर्ष 26 जुलाई को कारगिल जंग (Kargil War) में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को सम्मानित करने और जंग में मिली जीत के उपलक्ष्य में ‘कारगिल विजय दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है। 26 जुलाई का ये दिन ‘ऑपरेशन विजय’ (Operation Vijay) की सफलता का प्रतीक माना जाता है।
भारत और पाकिस्तान के बीच ये कारगिल युद्ध साल 1999 में मई से जुलाई तक चला था। इस जंग में भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ चलाया गया था। इस ऑपरेशन के जरिए भारत के जांबाज सैनिकों ने कारगिल द्रास क्षेत्र में पाकिस्तानी हमलावरों द्वारा कब्जा किए गए भारतीय क्षेत्रो को फिर से वापस प्राप्त कर लिया था।
कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल युद्ध में दुश्मन को छक्के छुड़ा दिए थे। कैप्टन बत्रा का जन्म 1974 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। कैप्टन 1996 जून में मानेकशां बटालियन में आईएमए (IMA) में शामिल हुए थे। अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उनको बटालियन, 13 जेएके आरआईएफ को उत्तर प्रदेश जाने का आदेश मिला था। 5 जून को बटालियन का दोबारा आदेश आया और उनको द्रास, जम्मू और कश्मीर स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया। कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है।
भारतीय सेना के नायब सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव घातक प्लाटून का हिस्सा थे। सूबेदार योगेंद्र सिंह टाइगर हिल पर करीब 16,500 फीट ऊंची चोटी पर स्थित तीन बंकरों पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था। उनकी बटालियन ने 12 जून को टोलोलिंग टॉप पर कब्जा भी कर लिया। उन्होंने कई गोलियां खाने के बावजूद इस मिशन को पूरा किया। इनका जन्म यूपी के बुलंदशहर शहर में हुआ था। योगेंद्र सिंह यादव को देश के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे का नाम गर्व से लिया जाता है। लेफ्टिनेंट मनोज कुमार जन्म 25 जून 1975 को यूपी के सीतापुर में हुआ था। लेफ्टिनेंट 1/11 गोरखा राइफल्स के जवान थे। इन्होंने अपने देश के लिए जंग के दौरान अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उनकी टीम को पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने का काम सौंपा गया था। उन्होंने पाकिस्तानी सैनिक पर कई हमले किए थे। उन्हें भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
भदौरिया भी करगिल युद्ध का हिस्सा थे और इन्होंने दुश्मनों को खदेड़ने में अहम भूमिका निभाई थी। जंग के दौरान इन्होंने अपनी जान की कुर्बानी दे दी थी। इनका जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था। भदौरिया को जंग के दौरान उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
मेजर राजेश सिंह सेना के अधिकारी थे। इन्होंने करगिल युद्ध में अहम भूमिका अदा की थी। इनका जन्म उत्तराखंड के नैनीताल में साल 1970 में हुआ था। मेजर टोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन्होंने मिशन का नेतृत्व करते हुए कई दुश्मनों को मौत के घाट उतारा था। उनके अदम्य साहस के लिए उनको मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
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