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Kanshi Ram Birth Anniversary: बसपा के संस्थापक कांशीराम कैसे बने दलितों के मसीहा? इन 10 पॉइंट्स में समझें

नई दिल्ली. आज यानी 15 मार्च 2019 को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम का जन्म दिवस है. भारतीय दलित समाज कांशीराम को अपना मसीहा मानते थे. संभवतया डॉ. भीम राव अंबेडकर के बाद कांशीराम ही सबसे बड़े दलित चिंतक और दलित नेता के रूप में उभरे. उन्होंने बहुजनवाद सिद्धांत के जरिए सभी निचले तबकों को एकजुट किया और उन्हें अपने हक के लिए लड़ने की प्रेरणा दी. कांशीराम ने एससी और एसटी से लेकर ओबीसी और अल्पसंख्यकों को बहुजनवाद में शामिल किया. यही कारण रहा कि कांशीराम को अपने वक्त के सबसे बड़े समाज सुधारक के रूप में जाना गया. आइए उनकी सालगिरह पर जानते हैं कांशीराम के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें जिनसे वे दलितों के मसीहा बन गए.

1. कांशीराम का जन्म पंजाब के रोपड़ जिले में एक सिख दलित परिवार में 15 मार्च 1934 को हुआ था. उनका पूरा बचपन वहीं गुजरा और 1956 में रोपड़ के सरकारी कॉलेज से उन्होंने बीएससी की डिग्री ली. पढ़ाई के बाद कांशीराम ने पुणे में हाई एनर्जी मैटिरियल्स रिसर्च लैबोरेट्री में काम शुरू किया. वहां पहली बार जातिगत भेदभाव से उनका वास्ता पड़ा. वहां दलित कर्मचारियों को अंबेडकर जयंती पर छुट्टी नहीं मिलती थी. यहीं से उनके मन में समाज के निचले तबके के उत्थान की प्रेरणा जगी.

2. कांशीराम ने कुछ समय बाद ही अंबेडकर के लिखे साहित्य को पढ़ना शुरू किया. धीरे-धीरे वे एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उभरते चले गए. वे ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ शेड्यूल्ड कास्ट/ट्राइब्स बैकवर्ड क्लास एंड माइनॉरिटी एंप्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन के आंदोलन से जुड़े.

3. 1971 में कांशीराम ने एसटी, एससी, ओबीसी और माइनॉरिटी वेलफेयर संगठन की स्थापना की. इस संगठन के जरिए कांशीराम ने पिछड़ों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को रोकने और लोगों में जाति व्यवस्था के प्रति जागरुकता फैलाने जैसे काम किए.

4. कांशीराम ने फिर बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एंप्लाइज फेडरेशन (BAMCEF) की स्थापना की. 1976 में दिल्ली में इसका कार्यालय खोला गया. इस फेडरेशन के जरिए देशभर में लोगों तक डॉ. बीआर अंबेडकर के विचारों को पहुंचाया गया. अब कांशीराम एक अगड़े दलित नेता के रूप में उभरते जा रहे थे.

5. 1981 में कांशीराम ने ‘दलित शोषित समाज संघर्ष समिति’ की शुरुआत की. यह समिति BAMCEF के साथ ही काम करती रही.

6. कांशीराम ने जाति व्यवस्था में सवर्णों के निचले तबके के लोगों पर अत्याचारों के खिलाफ बहुजनवाद का सिद्धांत दिया. बहुजनवाद में कांशी राम ने सभी एसटी, एससी और ओबीसी वर्ग को साथ लिया. उनका कहना था कि देश में 85 प्रतिशत बहुजनों पर 15 प्रतिशत सवर्ण राज करते हैं.

7. 80 के दशक में कांशीराम ने अपने संघर्ष को और आगे बढ़ाते हुए सक्रिया राजनीति में आने का फैसला लिया. 14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की. बसपा कांशीराम के बहुजनवाद सिद्धांत पर ही आधारित है. हालांकि कांशीराम शुरुआती दिनों में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को सपोर्ट करते थे, लेकिन उसके कांग्रेस से जुड़ जाने के बाद उन्होंने उस पार्टी का समर्थन करना छोड़ दिया था.

8. 1984 में कांशीराम ने छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चंपा से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा. बसपा के गठन के बाद कांशीराम ने कहा था कि हम पहला चुनाव हारने के लिए लड़ेंगे. दूसरी बार लोगों की नजरों में आने के लिए और तीसरी बार जीतने के लिए चुनाव लड़ेंगे. कांशीराम ने 1988 में इलाहाबाद लोकसभा सीट से कद्दावर नेता वी पी सिंह के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे. हालांकि उस चुनाव में कांशीराम को हार मिली लेकिन हार का अंतर चंद हजार वोट ही था.

9. वैसे तो कांशीराम ने बसपा को देशभर में अपनी पहचान दिलाने की कोशिश की लेकिन सबसे ज्यादा उन्हें उत्तर प्रदेश के दलितों से अच्छा रेस्पोंस मिला. कांशीराम ने यूपी में बसपा की जड़ें जमाईं. 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी चुना.

10. अपने जीवन में कांशीराम को कई बीमारियों से भी जूझना पड़ा. उन्हें एक बार हार्ट अटैक भी आ चुका था. इसके अलावा उन्हें डायबिटीज की बीमारी थी. 9 अक्टूबर 2006 को उन्हें फिर दिल का दौरा पड़ा और दिल्ली में उस दिन कांशीराम ने अंतिम सांस ली. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कांशीराम के निधन पर उन्हें अपने वक्त के सबसे महान सामाजिक सुधारक बताया.

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Aanchal Pandey

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