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क्या अंबेडकर के अनुयायी नहीं चल रहे उनकी राह पर?, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अंबेडकर की तस्वीर पर किए पुष्प अर्पित

नई दिल्ली। संविधान निर्माता एवं शूद्रों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि के दौरान मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उन्होंने श्रद्धांजलि दी। उनकी पुण्यतिथि पर यदि उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों का वर्णन किया जाए तो यह […]

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क्या अंबेडकर के अनुयायी नहीं चल रहे उनकी राह पर?, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अंबेडकर की तस्वीर पर किए पुष्प अर्पित
  • December 6, 2022 2:39 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली। संविधान निर्माता एवं शूद्रों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि के दौरान मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उन्होंने श्रद्धांजलि दी। उनकी पुण्यतिथि पर यदि उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों का वर्णन किया जाए तो यह असम्भव है लेकिन उन्होंने खासकर दलितों को जो मार्ग दिखाया था, क्या दलित समाज आज भी उस मार्ग पर चल रहा है यह बड़ा सवाल है।

अंबेडकर ने क्या किया दलित समाज के लिए?

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 3 अप्रेल 1952 एवं मृत्यु 6 दिसंबर 1956 को हुई थी। उन्होने सदैव ही वर्ण व्यवस्था का विरोध करते रहे हैं। उन्होंने दलित समाज के उत्थान के लिए एवं छुआछूत का विरोध करते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया था। साथ ही उन्होंने दलित समाज को किसी भी तरह की मूर्ति पूजा पर आस्था रखने से भी रोका था।

क्या दलित भूल गए हैं उनका रास्ता?

ईश्वर एवं मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले डॉ. अंबेडकर ने अपने समाज के लिए भी इस काम को वर्जित किया था लेकिन आगे चलकर स्वयं दलित समाज ने अंबेडकर की ही मूर्ति का निर्माण करके उनकी पूजा अर्चना आरम्भ कर दी जो कि अंबेडकर की नीति के खिलाफ था।

राजनीति में आज़माया हाथ

आम्बेडकर ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1926 में की साथ ही 1956 तक वह राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहें. उन्हे दिसंबर 1926 में बॉम्बे का गवर्नर एवं बॉम्बे विधानपरिषद के सदस्य के रूप मे नामित किया गया। उन्होंने अक्सर आर्थिक मामलों मे ही अपने भाषण दिए। 1936 तक वह बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे।
1936 मे अंबेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की जो 1937 में विधान सबा चुनावों मे 13 सीटें जीती अंबेडकर को बॉम्बे विधानसभा के विधायक के रूप मे चुना गया था। वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे।

कई पुस्तकें भी लिखीं

अंबेडकर ने अपनी पहली पुस्तक 15 मई 1936 को एनीहिलेशन ऑफ कास्ट (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशित की जो उनके न्यूयॉर्क मे लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में उन्होंने जाति व्यवस्था एवं हिंदू नेताओं की जोरदार आलोचना की थी।

गांधी के फैसले की कड़ी निंदा की थी

महात्मा गांधी द्वारा अछूत समदाय के लोगों को हरिजन कहे जाने की अंबेडकर ने कड़ी निंदा की थी। वह धर्म में बराबरी को लेकर लड़ाई लड़ रहे थे न कि उन्हे किसी विशेष नाम की आवश्यकता थी। उनका मानना था कि, धर्म के भीतर किसी भी विशेष नाम या पद का महत्व नहीं होना चाहिए बल्कि सबको बराबरी का दर्जा प्राप्त होना चाहिए।

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