नई दिल्ली. वीपी सिंह सरकार के ओबीसी आरक्षण और नरसिम्हा राव सरकार के 10 परसेंट सवर्ण आरक्षण की समीक्षा करने वाली सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संविधान पीठ में शामिल रहे देश के पूर्व सीजेआई जस्टिस एएम अहमदी ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा गरीब सवर्णों को 10 परसेंट आरक्षण देने पर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के लिए अधिकतम 50 परसेंट सीमा तय की थी ताकि कोई पार्टी इसका चुनावी फायदे के लिए दुरुपयोग ना कर सके.
मंडल कमीशन केस के नाम से मशहूर इंदिरा साहनी केस में सीनियर वकील इंदिरा साहनी ने नरसिम्हा राव सरकार द्वारा सवर्ण गरीबों को आर्थिक आधार पर 10 परसेंट आरक्षण देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिस केस में ओबीसी आरक्षण से लेकर राव के फैसले तक की समीक्षा हुई और उसे भारत में आरक्षण पर ऐतिहासिक फैसला माना जाता है.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से इंटरव्यू में जस्टिस अहदमी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिहाज से नरेंद्र मोदी सरकार का सवर्ण आरक्षण का फैसला और इसके लिए संविधान संशोधन ठीक नहीं है. उन्होंने कहा, “संविधान के आर्टिकल 16 के मुताबिक आर्थिक आधार नागरिक के पिछड़ेपन के आकलन का इकलौता आधार नहीं हो सकता. हमने बहुमत के फैसले ये तय किया था. ये बिल्कुल साफ है. मेरी राय में सरकार का फैसला संविधान पीठ के बहुमत के फैसले से टकराता है.”
क्या सुप्रीम कोर्ट में टिक पाएगा ऊंची जातियों के गरीब सवर्णों को 10 परसेंट आरक्षण का चुनावी दांव ?
जस्टिस अहमदी ने सवर्ण आरक्षण फैसले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से सरकार की सलाह-मशविरा पर संशय जाहिर करते हुए कहा- “मुझे लगता है कि इसकी और गहराई से पड़ताल की जरूरत है. मुझे नहीं पता कि ये सब करने से पहले उन्होंने अटॉर्नी जनरल से राय ली या नहीं. ये एक महत्वपूर्ण संवैधानिक फैसला है. वो एक स्वतंत्र आदमी हैं. मुझे याद है कि जब हम ये केस सुन रहे थे तो उन्होंने सरकार के खिलाफ बहस की थी.”
मोदी सरकार के सर्वणों को 10 परसेंट आरक्षण का फायदा किन ऊंची जातियों को किस आधार पर मिलेगा ?
मोदी सरकार द्वारा आर्थिक कमजोर सवर्णों को 10 परसेंट आरक्षण फैसले की कानूनी वैद्यता के सवाल पर जस्टिस अहमदी ने कहा- “फैसले में बिल्कुल साफ है कि आरक्षण 50 परसेंट से ऊपर नहीं जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने एक सीमा तय कर दी थी ताकि चुनावी मकसद से कोई नया आरक्षण लाकर कोटा ना बढ़ाया जाए. इस फैसले के बाद मात्र 40 परसेंट बचा है.”
नरेंद्र मोदी से पहले नरसिम्हा राव के गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था
जस्टिस अहमदी ने कहा कि मोदी सरकार का ये सवर्ण आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के 50 परसेंट आरक्षण सीमा का उल्लंघन है और ये समय बताएगा कि अगर कोई इसे कोर्ट में चुनौती देता है तो कोर्ट उसकी कैसे व्याख्या करेगा. जस्टिस अहमदी ने आगे कहा- “बाकी लोगों के लिए नौकरी के मौके और कम होंगे. 40 परसेंट के अंदर भी देश की बहुत बड़ी आबादी नौकरी खोज रही है. सरकार नई नौकरी नहीं ला रही है. कई बयान दिए गए कि सरकार नई नौकरी पैदा करेगी. मेक इन इंडिया नहीं हो पाया. अगर ये होता तो नौकरियां होतीं. मुझे तो ये चुनावी हथकंडा ही लगता है.”
सुप्रीम कोर्ट का इंदिरा साहनी केस जजमेंट यानी मंडल कमीशन फैसला क्या था
वीपी सिंह की सरकार ने 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिश पर 27 परसेंट ओबीसी आरक्षण लागू करने का फैसला किया था. 1983 में बीपी मंडल कमीशन की रिपोर्ट आ गई थी. 1990 में पिछड़ी जातियों को 27 परसेंट ओबीसी आरक्षण देने के वीपी सिंह सरकार के फैसले के बाद नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार आई तो उसने ओबीसी आरक्षण से नाराज ऊंची जातियों को मनाने के लिए गरीब सवर्णों को 10 परसेंट आरक्षण देने का फैसला किया.
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नरसिम्हा राव सरकार के सवर्ण आरक्षण के फैसले के खिलाफ सीनियर वकील इंदिरा साहनी सुप्रीम कोर्ट चली गईं और फिर कोर्ट ने ओबीसी कोटा से लेकर राव के सवर्ण कोटा तक की समीक्षा की. कोर्ट के फैसले ने ओबीसी में क्रीमी लेयर की पहचान कर उनको फायदे से बाहर करने और पिछड़ों के बीच अति पिछड़ों के हक की रक्षा करने का रास्ता खोला. कोर्ट ने नरसिम्हा राव के सवर्ण आरक्षण को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया.
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