जस्टिस लोया केस : सुप्रीम कोर्ट ने मौत को बताया प्राकृतिक, कही ये बड़ी बातें

जज लोया की मौत मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निष्पक्ष जांच करवाने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए एसआईटी द्वारा जांच करवाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत प्राकृतिक कहा. जानिए सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान क्या क्या बड़ी बातें कहीं.

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जस्टिस लोया केस : सुप्रीम कोर्ट ने मौत को बताया प्राकृतिक, कही ये बड़ी बातें

Aanchal Pandey

  • April 19, 2018 12:31 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. सीबीआई के स्पेशल जज बीएच लोया की मौत मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निष्पक्ष जांच करवाने वाली मांग को खारिज कर दिया है. शीर्ष न्यायालय के इस फैसले के बाद अब इस केस की जांच एसआईटी द्वारा नहीं हो पाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत को प्राकृतिक मौत बताया. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एएम खानविलकर की पीठ ने ये फैसला सुनाया. जानिए इस दौरान कोर्ट ने क्या कहते हुए इस मामले की जांच करवाने वाली जनहित याचिकाओं को खारिज किया.

सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने कहा कि ये सिर्फ मामले को सनसनीखेज बनाने और बॉम्बे हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ आधारहीन आरोप लगाना था. सुप्रीम कोर्ट ने उन दलीलों पर भी प्रहार किया जिसमें कहा गया कि एक शख्स पूरी न्यायपालिका को चला रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोया की मौत प्राकृतिक है. व्यावसायिक लड़ाई और राजनीतिक लड़ाई लोकतंत्र हॉल में लड़ी जानी चाहिए. जनहित याचिकाओं का इस्तेमाल एजेंडा वाले लोग कर रहे हैं. याचिका के पीछे असली चेहरा कौन है पता नहीं चलता. तुच्छ और मोटिवेटिड जनहित याचिकाओं से कोर्ट का वक्त खराब होता है. कोर्ट कानून के शासन के सरंक्षण के लिए है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस में याचिकाकर्ताओं ने उनका कोई निजी एजेंडा नहीं है. लेकिन सुनवाई के दौरान न्यायपालिका पर हमले का प्रयास किया गया. यहां तक कि इस बेंच में शामिल जस्टिस खानविलकर और जस्टिस चंद्रचूड पर भी आरोप लगाया गया कि वो बॉम्बे से हैं और जजों को जानते हैं. अगर हम सुनवाई से खुद को अलग करते तो अपने कर्तव्य से हटना होता और ये जज की अंतरात्मा से जुडा है. याचिकाकर्ताओं ने ऐसे मामलों का हवाला दिया जो लोया केस से संबंधित नहीं थे.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ चीजों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है. ये याचिका सैंकेंडलस और आपराधिक अवमानना के समान है. लेकिन हम कोई कार्रवाई नहीं कर रहे. याचिकाकर्ताओं ने याचिका के जरिए जजों की छवि खराब करने का प्रयास किया. बता दें सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बायोमैट्रिक पहचान का दुरुपयोग किया जा सकता है

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