J&K: कश्मीरी राजनीतिक दलों के बीच कानून पब्लिक सेफ्टी एक्ट (Public Safety Act) को लेकर जुबानी जंग छिड़ गई है. जिसका कश्मीर में “कानून और व्यवस्था के मुद्दों” को संबोधित करने के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बीते दिनों एक रैली में कहा कि अगर […]
J&K: कश्मीरी राजनीतिक दलों के बीच कानून पब्लिक सेफ्टी एक्ट (Public Safety Act) को लेकर जुबानी जंग छिड़ गई है. जिसका कश्मीर में “कानून और व्यवस्था के मुद्दों” को संबोधित करने के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बीते दिनों एक रैली में कहा कि अगर उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर में सत्ता में आ जाती है तो वह इस क्रूर कानून को रद्द कर देंगे. उन्होंने कहा, ‘पूरे देश में कोई जन सुरक्षा कानून नहीं है लेकिन जम्मू-कश्मीर के लोगों को परेशान करने के लिए इस कानून को लागू किया गया है।’
जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला की सरकार द्वारा 1978 में जम्मू और कश्मीर में लकड़ी की तस्करी में शामिल माने जाने वाले किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी या हिरासत में लेने की अनुमति देता है। कानून के अनुसार, “राज्य सुरक्षा” के खिलाफ कार्य करने या “सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी” से बचने के लिए किसी को भी हिरासत में लिया जा सकता है। जिसमें पुलिस संदिग्ध के खिलाफ फाइल डिप्टी कमिश्नर को सौंपती है जो पीएसए के डोजियर को मंजूरी देता है। बता दें, इसके तहत एक संदिग्ध को बिना किसी आपराधिक आरोप के तहत भी हिरासत में लिया जा सकता है और उसे अदालत में पेश होने की आवश्यकता नहीं है।
एक बार किसी व्यक्ति को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिया जाता है, तो आपराधिक अदालत द्वारा जमानत का कोई प्रावधान नहीं है। पीएसए के तहत गिरफ्तार हुआ व्यक्ति पुलिस के सामने अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए वकील नहीं रख सकता है। इसके बाद, उसे या उसके परिवार को न्याय दिलाने का एकमात्र तरीका सुपीरियर कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करना है। अगर अदालत पीएसए हिरासत को खारिज कर देती है, तो कस्टोडियल अथॉरिटी संदिग्ध के खिलाफ एक और पीएसए वारंट जारी कर सकती है।