नई दिल्ली. यूपी शिया मुस्लिम वक्फ बोर्ड के चेयरमेन वसीम रिजवी एक बार फिर से विवादों में हैं, सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका लगाकर कि इस चांद तारे वाले हरे झंडे का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है. ये झंडा मुस्लिम लीग का है, जिन्ना के वक्त में ये झंडा अपनाया गया था. बाद में जिन्ना पाकिस्तान चले गए और पाकिस्तान मुस्लिम लीग ने इस झंडे को अपना लिया. इस याचिका में मांगी की गई है कि देश में विदेशी झंडा अपनाने, फहराने पर रोक लगे. ये मामला अपने आप में काफी दिलचस्प है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या जिन्ना के समय इस झंडे पर सवाल नहीं उठे थे कि इसे इस्लाम का झंडा क्यों माना जाए? बिलकुल उठे थे और सच कहा जाए तो जिन्ना ने ही लीग के इस झंडे को इस्लाम के झंडे के रूप में अपनाने पर जोर देने की मुहिम चलाई थी. शुरूआत हुई थी, मुस्लिम लीग की ही एक कॉन्फ्रेंस में मंच से.
ये 1938 की बात है, मुस्लिम लीग का पूरा नाम ऑल इंडिया मुस्लिम लीग हुआ करता था. जिन्ना चाहते थे कि इस्लाम के मानने वाले मुस्लिम लीग के इस झंडे को एक धार्मिक झंडे के दौर पर अपना लें, वैसे भी इस झंडे में रंग से लेकर चांद तारे तक का महत्व ओटोमन साम्राज्य से लेकर दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य ने भी माना था. फिर भी कुरान आदि किसी भी धार्मिक किताब या रवायत में इसका कोई जिक्र नहीं था. तो जिन्ना ने मुस्लिम लीग की ‘गया कॉन्फ्रेंस’ में खास तौर पर झंडे को लेकर अपना विचार मुस्लिम लीग के सदस्यों के सामने रखा था.
मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा, ‘’ Today ion this huge gathering you have honored me by entrusting the duty to unfurl the flag of Muslim League. The flag of the Muslim League is the flag of Islam, for you cannot separate the Muslim League from Islam. Many people misunderstand us when we talk of Islam, particularly our Hindu friends, when we say, “This flag is the flag of Islam,” they think we are introducing religion into politics – a fact of which we are proud. Islam gives us a complete code. It is not only religion but it contains laws, philosophy and politics. In fact, it contains everything that matters to a man from morning to night’’. जाहिर है जिन्ना इस बात से खुश थे कि उनको इस झंडे को सभी के सामने रखने,फहराने का मौका मिलना उनके लिए गर्व की बात थी. साथ ही साथ उन्होंने साफ साफ कह दिया कि आप मुस्लिम लीग को इस्लाम से अलग नहीं कर सकते. जाहिर है ये झंडा भी इस्लाम का झंडा है. मुस्लिम लीग के सदस्यों को, देश के मुसलमानों को जिन्ना का ये मैसेज काफी साफ था. इस भाषण को खत्म भी जिन्ना ने झंडे की बात से ही किया, ‘’The only way for us now to unite and offer a united front and work together. It is ti this end and that we are trying and we want all Muslims to come under one flag. The flag of muslim league, the flag of Islam, so that we may all be one.’’
आखिरी लाइनों से ही स्पष्ट है कि जिन्ना उस वक्त देश के मुसलमानों को उस मुस्लिम लीग के झंडे से इमोशनली जोड़ने की कोशिश कर रहे थे और आज जब ना जिन्ना है और ना ही पाकिस्तान, फिर भी हर मुस्लिम मोहल्ले में जिन्ना का वो झंडा लहरा रहा है. 90-95 फीसदी को तो ये भी पता नहीं होगा कि ये झंडा इस्लाम का नहीं बल्कि जिन्ना की मुस्लिम लीग का था और अब भी पाकिस्तान की मुस्लिम लीग इसी झंडे का इस्तेमाल करती है. उस झंडे को मुसलमानों के बीच ले जाने के लिए जिन्ना कितना बेताब थे, ये आप इसी से जान सकते हैं कि जब अक्टूबर 1938 में जिन्ना कराची में सिंध मुस्लिम लीग की कान्फ्रेंस में पहुंचे तो उसी झंडे की वकालत करने लगे, उन्होंने कहा, ‘’But I feel confident that it will not be very long before the Musalmaans of North West Frontier Province will come home on the platform of the All India Muslim League and work as loyally and faithfully as as any Musalman under the banner and flag of the All India Muslim League and those who have and are misleading the Pathans will meet with their ‘Nemesis’.‘’
कराची के इस भाषण में जिन्ना ने कांग्रेस पर भी सवाल उठाए कि कैसे वो वंदेमातरम और तिरंगे के जरिए कैसे मुसलमानों की भावनाओं का ख्याल रखे बिना घृणा फैला रही है, जिन्ना ने कहा,‘’They started in the legislatures with a song of Vande Mataram which is not only idolatrous but in its origin and substance a hymn to spread hatred for the Mussalmans. And they in their wisdom tried and are persisting now and compelling the school authorities to sing Bande Matram at congregations and school gatherings although it is admitted that it is not a national song. They have persistently hoisted tricolour flags in a most aggressive and offensive manner on all Government and public institutions irrespective of the feelings of others although it is admitted that it is not a national flag’’.
जिन्ना के इस भाषण से दो बातें तय होती हैं कि उन दिनों मूल रूप से इन दो झंड़ों के बीच ही लड़ाई थी, कांग्रेस का तिरंगा और मुस्लिम लीग का चांद तारे वाला हरा झंडा. बाद में एक भारत का नेशनल फ्लैग बन गया, उसमें चरखे की जगह अशोक चक्र शामिल कर लिया गया और मुस्लिम लीग के हरे झंडे में एक सफेद पट्टी डालकर उसे पाकिस्तान का झंडा बना दिया गया. बिना अशोक चक्र वाला झंडा कांग्रेस पार्टी ने अपना लिया, ताकि उसे भारत की जनता के और करीब दिखा सके तो पाकिस्तान में भी मुस्लिम लीग ने अपना पुराना झंडा बरकरार रखा, जिसे आज भी भारत के मुसलमान इस्लामिक झंडे के तौर पर अपने जुलूसों, त्योहारों आदि में छतों, बाइकों, मोहल्लों में लगा लेते हैं. एक तीसरा झंडा भारत में और था, वो था भगवा जिसे अलग अलग शक्लों में हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने अपना लिया, ये अलग बात है कि उन दिनों ये दोनों ही संगठन ज्यादा ताकतवर नहीं थे, अपने झंडे को देश का झंडा बनाने की ताकत में तो बिलकुल भी नहीं.
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