श्रीनगर. जम्मू और कश्मीर दो महीने बाद पर्यटकों के लिए गुरुवार से खुलेगा. इससे दो महीने पहले पर्यटकों को एक एडवाइजरी के जरिए आतंकी खतरे के कारण घाटी छोड़ने के लिए कहा गया था. सलाहकारों और मुख्य सचिव के साथ स्थिति-सह-सुरक्षा समीक्षा बैठक के बाद सोमवार को राज्यपाल सत्य पाल मलिक द्वारा अंकुश लगाने के निर्णय की घोषणा की गई. केंद्र ने 2 अगस्त को अमरनाथ यात्रा को रद्द कर दिया था और तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को सलाह दी थी कि आतंकी खतरों के खुफिया इनपुट के मद्देनजर घाटी में अपनी यात्रा को कम से कम कर दें या तुरंत खत्म कर दें. ये अनुच्छेद 370 के निरस्त करने से कुछ दिन पहले किया गया था.
अब एक बार फिर पर्यटकों के लिए इसे खोला जाएगा. एक अन्य कदम में, प्रशासन ने बुधवार को उच्च माध्यमिक स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को फिर से खोला. श्रीनगर में, सुरक्षा बल प्रतिष्ठित श्री प्रताप कॉलेज के बाहर तैनात थे और परिसर में छात्रों को उनके पहचान पत्र की जांच करने के बाद एंट्री के लिए अनुमति दे रहे थे. एक छात्र ने कहा, मैं पढ़ाई का सामान लेने आया था कक्षाओं में भाग लेने के लिए नहीं. शिक्षकों ने हमें बताया कि स्थिति सामान्य होने के बाद ही कक्षाएं शुरू हो सकती हैं. अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए केंद्र ने 5 अगस्त को घोषणा के बाद जम्मू और कश्मीर में प्रतिबंध लगा दिए थे. सरकार के इस कदम के बाद से शटडाउन जारी है. अभी मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं काफी हद तक अवरुद्ध हैं.
कई कश्मीरी नेता अभी भी नजरबंद हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को 6 अक्टूबर को श्रीनगर में पार्टी के प्रतिनिधिमंडल से मिलने की अनुमति दी गई थी. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती के साथ अब्दुल्ला अगस्त से नजरबंद हैं. प्रशासन ने 24 अक्टूबर को जम्मू और कश्मीर में पहली चुनावी प्रक्रिया के तहत 24 अक्टूबर को ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल चुनाव कराने का भी फैसला किया है. हालांकि, कांग्रेस ने राजनीतिक नेताओं की निरंतर नजरबंदी का हवाला देते हुए इन चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला किया है. जम्मू कश्मीर कांग्रेस के प्रमुख गुलाम अहमद मीर ने कहा, कांग्रेस लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने में विश्वास करती है और वह कभी भी किसी भी चुनाव से दूर नहीं हुई है. लेकिन आज, हम राज्य प्रशासन के उदासीन रवैये और घाटी में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के लगातार धरने के कारण बीडीसी चुनावों के बहिष्कार का फैसला लेने के लिए मजबूर हैं.
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