श्रीनगर, पवित्र अमरनाथ गुफा के पास शुक्रवार शाम को बादल फटने से भीषण हादसा हो गया है, इस आपदा में अब तक 12 श्रद्धालुओं की मौत की खबर आ रही है. मौतों का ये आंकड़ा समय के साथ और बढ़ सकता है. जानकारी के मुताबिक एनडीआरएफ ने तुरंत राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया […]
श्रीनगर, पवित्र अमरनाथ गुफा के पास शुक्रवार शाम को बादल फटने से भीषण हादसा हो गया है, इस आपदा में अब तक 12 श्रद्धालुओं की मौत की खबर आ रही है. मौतों का ये आंकड़ा समय के साथ और बढ़ सकता है. जानकारी के मुताबिक एनडीआरएफ ने तुरंत राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया था, जिससे कई लोगों को बचा भी लिया गया है. राहत और बचाव कार्य अभी भी जारी है. बादल फटने के बाद तेजी से फ्लैश फ्लड आया, जो टेंट सिटी में प्रवेश कर गया, जिसके चलते कई लोग बह गए. अब मुद्दा ये है कि अक्सर बादल फटने की खबर पर्वतीय इलाकों में ही क्यों होती है? क्या वजह होती है जिससे बादल पहाड़ों पर ज्यादा फटते हैं? आइए आपको इसके बार में विस्तारपूर्वक बताते हैं:
बादल फटने का मतलब ये नहीं होता कि बादल के टुकड़े-टुकड़े हो गए हैं. मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब एक जगह पर अचानक एक साथ भारी बारिश हो जाए तो उसे बादल फटना कहा जाता है. आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अगर पानी से भरे किसी गुब्बारे को फोड़ दिया जाए तो सारा पानी एक ही जगह तेज़ी से नीचे गिरने लगेगा, ठीक वैसे ही बादल फटने से पानी से भरे बादल की बूंदें तेजी से अचानक जमीन पर गिरती है जिसे बादल फटना कहते हैं. इसे फ्लैश फ्लड या क्लाउड बर्स्ट भी कहा जाता है. अचानक तेजी से फटकर बारिश करने वाले बादलों को प्रेगनेंट क्लाउड भी कहा जाता है.
कहीं भी बादल फटने की घटना तब होती है जब काफी ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह पर आकर ठहर जाते हैं, इससे वहां मौजूद पानी की बूंदें आपस में मिल जाती हैं. बूंदों के भार से बादल का घनत्व बढ़ जाता है और फिर अचानक बारिश शुरू हो जाती है. बादल फटने पर 100 मिमी प्रति घंटे की रफ्तार से बारिश होने लगती है.
पानी से भरे बादल अक्सर पहाड़ी इलाकों में फंस जाते हैं. पहाड़ों की ऊंचाई की वजह से बादल आगे नहीं बढ़ पाते, फिर अचानक एक ही जगह पर तेज बारिश शुरू हो जाती है. चंद सेकेंड में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है, पहाड़ों पर अमूमन 15 किमी की ऊंचाई पर बादल फटते हैं. हालांकि, बादल फटने का दायरा अधिकतर एक वर्ग किमी से ज्यादा कभी भी रिकॉर्ड नहीं किया गया है. वहीं, पहाड़ों पर बादल फटने से इतनी तेज बारिश होती है जो सैलाब बन जाती है. पहाड़ों पर पानी रूकता नहीं इसलिए तेजी से पानी नीचे आने लगता है, नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़ और पत्थरों के टुकड़े ले आता है. इसकी गति इतनी तेज होती है कि इसके सामने पड़ने वाली हर चीज बर्बाद हो जाती है, इसे सैलाब भी कहा जाता है.
पहले यह आम धारणा थी कि बादल फटने की घटना सिर्फ पहाड़ों पर ही होती है. लेकिन मुंबई में 26 जुलाई 2005 को बादल फटने की एक घटना के बाद लोगों की ये धारणा बदल गई. अब यह माना जाता है कि बादल कुछ खास स्थितियों में फटता हैं, वे स्थितियां जहां भी बन जाएं बादल वहीं फट सकता है. कई बार बादल के मार्ग में अचानक से गर्म हवा का झोंका आ जाने से भी बादल फटने की घटना होती है.
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