नई दिल्ली : देश को चांद पर भेजने वाले शख्स का नाम तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप उनके और उनकी निजी जिंदगी के बारे में जानते हैं ? शायद नहीं, लेकिन अब आपको पता चल जाएगा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चेयरमैन एस. सोमनाथ पूरी दुनिया में एक मशहूर नाम हैं। इस […]
नई दिल्ली : देश को चांद पर भेजने वाले शख्स का नाम तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप उनके और उनकी निजी जिंदगी के बारे में जानते हैं ? शायद नहीं, लेकिन अब आपको पता चल जाएगा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चेयरमैन एस. सोमनाथ पूरी दुनिया में एक मशहूर नाम हैं। इस शख्स ने करोड़ों-अरबों रुपये के चंद्रयान प्रोजेक्ट को सफल बनाकर इतिहास में देश का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया है, जबकि वह खुद कभी एक टूटे-फूटे घर में रहते थे। उनकी जेब में कॉलेज जाने के लिए पैसे भी नहीं थे, इन बातों का खुलासा उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है, जो जल्द ही लोगों को पढ़ने के लिए उपलब्ध होगी। उन्होंने आत्मकथा इसलिए लिखी ताकि युवा उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें.
इसरो चीफ ने अपनी आत्मकथा में अपनी निजी जिंदगी से जुड़ी कई बातें लिखी हैं। वो बातें जिनके बारे में उनके अलावा अब तक कोई नहीं जानता. इसमें उनके दिल के करीब उन चार लोगों का भी जिक्र है जिन्होंने उन्हें इसरो चीफ बनाया. आत्मकथा मलयालम में लिखी गई है, ‘निलावु कुदिचा सिम्हांगल’ नाम की यह पुस्तक इसरो प्रमुख के संघर्ष, साहस और जुनून की कहानी है कि कैसे एक छोटे से गांव में टूटे-फूटे घर में गरीबी में रहने वाला एक आदमी पहले इंजीनियर बना, फिर इसरो चीफ और चंद्रयान प्रोजेक्ट का इंचार्ज बन दुनिया भर में सफल रहा। चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता ने उन्हें अपनी आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित किया, ताकि युवाओं को उनके जीवन से प्रेरणा मिल सके और वे भी एक मुकाम पर पहुंचकर देश सेवा में अपना योगदान दे सकें।
केरल में लिपि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इसरो चीफ की आत्मकथा नवंबर में रिलीज की जाएगी और उसके बाद बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। इसरो चीफ ने इसमें लिखा है कि एक समय ऐसा भी था जब उनके पास रहने के लिए अच्छा घर नहीं था। हॉस्टल की फीस और अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए वह बस की बजाय खटारा साइकिल से कॉलेज जाते थे। पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में सोमनाथ ने बताया कि उनकी आत्मकथा असल में गांव में रहने वाले एक साधारण युवक की कहानी है. उसे रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं था. सौभाग्य से, वहाँ एक व्यक्ति था जिसने इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम का फॉर्म लाकर उसे दिया, जिसे उसने भर दिया और सौभाग्य से उसे प्रवेश मिल गया। इस आत्मकथा में इसरो चीफ के चार करीबी लोगों का जिक्र किया गया है