नई दिल्ली। दिल्ली के महरौली मे हुए श्रद्धा हत्याकांड से जहां एक ओर समस्त भारतवासी आहत हैं वहीं दूसरी ओर इस तरह की असमान्य घटनाओं को लेकर भी राजनीति भुनाई जा सकती है यह सोचकर भी हृदय कांप उठता है कि, क्या अब इस सेकुलर देश में रंग,जानवर एवं हत्या की घटनाओं को भी अलग पहचान दी जाएगी। हत्या की घटना को अंजाम देने वाला व्यक्ति सिर्फ एक अपराधी मात्र ही हो सकता है यदि आप उसे किसी धर्म विशेष की सूची में रखते हुए एक मंसूबा बताते हैं तो वह कतई न्याय संगत नहीं होगा। जबकि उस बात का कोई तर्क भी न हो।
श्रद्धा की हत्या को लेकर देशभर में रोष की भावना व्याप्त है, इस बात को दावे से कहा जा सकता है कि, देश भर का कोई भी व्यक्ति आफताब नाम के इस आरोपी के पक्ष में नहीं होगा, लेकिन गोवा में एक ऐसी घटना देखने को मिली जिसको देखकर लगा कि, इस घटना से कुछ लोग उतने आहत नहीं हैं जितना इस घटना को वह एक मौके के रूप में देख रहे हैं। गोवा में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने आफताब का पुतला जलाया जो कि, एकदम सही था, लेकिन बजरंग दल के कार्यकर्ता इस घटना को लव जिहाद का नाम दे रहे हैं, सोंचिए यह कितना न्यायसंगत है।
लव जिहाद एक ऐसी परिकल्पना है जिसे अब तक सिद्ध नहीं किया जा सका है, क्योंकि इस घटना को लेकर अब तक न ही कोई संगठन सामने आया है और नही किसी का औपचारिक बयान देखने या सुनने को मिला है। विवाह को लेकर कई बार अलग धर्मों के जोड़ों के बीच अपनी रीतियों को लेकर आपसी मतभेद देखे गए हैं जो की स्वाभाविक होता है तो आखिर इसे लव जिहाद कैसे कहा जा सकता है।
पुरातन काल से कोई भी एजेंडा किसी संगठन के माध्यम से ही चलाया जा सकता है, बिना संगठन के यदि कोई एजेंडा व्यक्तिगत रूप से चलाया जाता है तो उसे एजेंडा नहीं बल्कि एक विक्रति का नाम दिया जा सकता है।
श्रद्धा हत्याकांड में अब तक आरोपी आफताब के खिलाफ जो भी सबूत एवं साक्ष्य प्राप्त हुए हैं उनसे सिर्फ यही सिद्ध होता है कि, या तो वह कोई विकृत मानसिकता का व्यक्ति है या फिर दोनों के बीच आपसी तनाव को लेकर इस घटना को अंजाम दिया गया है।
आरोपी आफताब के मामले में अब तक किसी धर्म विशेष को बदलने या फिर धर्म प्रचार करने अथवा किसी भी धार्मिक संगठन के आधीन रहने के साक्ष्य सामने नहीं आए हैं। तो फिर इसे लव जिहाद का नाम देने वाले इस हत्या से इतने आहत नहीं है जितना कि वह इस हत्या को अवसर के रूप में देख रहे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने एक केस का फैसला सुनाते हुए लिव इन रिलेशनशिप एव गैर धर्म एवं जाति में शादी करना वयस्क व्यक्ति की इच्छा बताते हुए इसको मंजूरी दी थी, यदि इसके बाद भी किसी अलग-अलग धर्म के प्रेमी युगल विवाह करने के बाद धार्मिक रिवाज या क्षेत्रीय रीतियों को लेकर झगड़ते हैं या फिर मामला हत्या तक पहुंच जाता है तो यह मात्र विकृति ही कहलाएगी न कि किसी तरह का जिहाद।
जब अन्तर्जातीय विवाह होने के बाद होन वाली संतान को पिता का उपनाम मिलता है तो क्या यह जाति को लेकर लव जिहाद की श्रेणी में आता है, यहां भी तो टारगेट करके एक जाति को खत्म करने का काम किया जा सकता है। लेकिन जवाब है नहीं क्योंकि इस तरह के केस भारत भर की आबादी के अनुसार न के बराबर होते हैं और इनमें किसी संगठन विशेष का एजेंडा भी छिपा नहीं होता है, इसलिए इस तरह की घटनाओं को अवसर के रूप में देखना बेहद ही निन्दनीय है।
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