नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के संबंध ऐतिहासिक रूप से उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि दोनों देश एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते हैं, लेकिन दोनो एक साथ भी नहीं रह सकते हैं। हाल के घटनाक्रम को देखें तो दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर खुलकर असहमति दिखी है। […]
नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के संबंध ऐतिहासिक रूप से उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि दोनों देश एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते हैं, लेकिन दोनो एक साथ भी नहीं रह सकते हैं। हाल के घटनाक्रम को देखें तो दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर खुलकर असहमति दिखी है। इस बार मामला अंतरराष्ट्रीय नहीं बल्कि भारत के अंदरूनी मुद्दे थे। पहले तो नरेंद्र मोदी सरकार के लोकसभा चुनाव से पहले नागरिकता संशोधन क़ानून लागू करने पर अमेरिका ने खुलकर असहमति जताई और फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ईडी द्वारा गिरफ़्तारी पर भी अमेरिका ने टिप्पणी की। साथ ही देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अपने बैंक खाते फ्रीज किए जाने को लेकर मोदी सरकार पर आरोप लगाया तब भी अमेरिका खुलकर सामने आया।
बीबीसी के मुताबिक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने लिखा कि टीम बाइडन ने बांग्लादेश चुनाव में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया। इसके तहत अमेरिका ने बांग्लादेश के अधिकारियों के खिलाफ वीजा पर बैन भी लगाया। लेकिन शेख हसीना के चुनाव जीतने के बाद अमेरिका ने मेलजोल बढ़ाने की कोशिश की है। अब अमेरिका भारत की चुनावी प्रक्रिया में दखल देने की कोशिश कर रहा है।
भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने पिछले महीने एक निजी चैनल के साथ बातचीत के दौरान भारत में सीएए लागू करने पर चिंता जताते हुए कहा था कि अमेरिका किसी देश से दोस्ती की वजह से अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ सकता है। उन्होंने कहा था कि धार्मिक स्वतंत्रता लोकतंत्र का आधार है तथा अमेरिका इसको नहीं छोड़ सकता है। किसी से दोस्ती और निकट संबंध के कारण हम अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ सकते हैं। गार्सेटी ने कहा कि सिद्धांतों के मामले में ये मायने नहीं रखता है कि हमारे संबंध किससे कितने गहरे हैं और किसके साथ दुश्मनी है। उन्होनें कहा कि अगर हमारे लोकतंत्र में कुछ गड़बड़ी है तो मैं आपको आमंत्रित करता हूँ कि आप उसे बताइए। उन्होंने कहा कि ये कोई एकतरफ़ा मामला नहीं है।
भारत ने एरिक गार्सेटी के इस बयान को ख़ारिज कर दिया था और कहा कि अमेरिका को इस मुद्दे को लेकर सही जानकारी नहीं है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि ये भारत का आंतरिक मामला है तथा सभी नागरिकों को भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
बीबीसी के मुताबिक, इस मुद्दे पर थिंक टैंक द ब्रूकिंग्स इंस्टिट्यूशन की सीनियर फेलो तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति की विश्लेषक तन्वी मदान ने लिखा कि ये हास्यास्पद है कि भारत में कुछ लोग सोचते हैं कि बाइडेन प्रशासन मोदी सरकार विरोधियों को समर्थन दे रहा है। उन्होंने आगे कहा कि वह भी तब जब बाइडन ने नरेंद्र मोदी को राजकीय अतिथि के रूप में बुलाया और भारत में जी-20 समिट को सफल बनाने में सहायता की। उन्होंने कहा कि पन्नू मामले में अमेरिकी संप्रभुता के उल्लंघन के आरोपों के बावजूद भी बाइडेन भारत आए। तन्वी मदान की इस टिप्पणी का जवाब वरिष्ठ पत्रकार आर जगन्नाथन ने दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका निश्चित तौर पर कमज़ोर भारत चाहता है जिससे यूक्रेन जैसे मामले में उसकी नीतियों से सहमति जता सकें। उन्होंने कहा कि अमेरिका मज़बूत भारत नहीं चाहता, जो अपने हितों की रक्षा स्वयं कर सके। मुद्दा ये नहीं है कि अमेरिका मोदी विरोधियों का समर्थन कर रहा है या नहीं लेकिन उसका समर्थन एक कमजोर भारत के लिए है।