नई दिल्ली. देश का पहला स्वदेशी इंडीजीनस एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत भारीतय नौसेना में शामिल हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 सितंबर को आधिकारिक तौर पर इस पोत को नौसेना को सौंपा है. अब अगर विक्रांत के नाम और उसके आदर्श वाक्य की बात करें तो विक्रांत का अर्थ होता है योद्धा, विक्रांत का अर्थ है साहसी, यानी जो शूर वीर है, वह विक्रांत है! जो विजेताओं पर भी विजय पा ले, वह विक्रांत है, जो पराजित न हो वही विक्रांत है. विदुषी मदालसा के भी एक पुत्र का नाम विक्रांत ही था. वहीं, IAC विक्रांत को लेकर ओवैसी ने पीएम मोदी पर हमला बोला है. ओवैसी ने कहा है कि PM ने आज जिस INS विक्रांत को कमीशन किया उसका लॉन्च 2013 में हो गया था.
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘मैंने नेवी को मुबारकबाद दी है, INS विक्रांत स्वदेशी विमान वाहक जिसका कमीशन आज प्रधानमंत्री ने अपने हाथों से किया उसका लॉन्च तो 2013 में ही हो गया था. हमें ये भी सोचना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार तीसरे विमान वाहक की इजाजत क्यों नहीं दे रही है? नेवी में हमें 200 जहाज की जरूरत है लेकिन सरकार इजाजत नहीं दे रही. हमारे पास बस 130 हैं, आखिर और विमान की इजाजत प्रधानमंत्री क्यों नहीं दे रहे हैं? मैं बताता हूँ वो इजाजत क्यों नहीं दे रहे, इसकी इजाजत इसलिए नहीं दे रहे हैं क्योंकि उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को अपनी नीतियों से बर्बाद कर दिया है और अब उनके पास पैसे ही नहीं बचे हैं.
1961 में भारतीय नौसेना में शामिल हुए INS Vikrant का ध्येय वाक्य था ‘जयेम सं युधिस्पृध’ यानी जो मुझसे युद्ध करेगा, उसे मैं पूरी तरह से पराजित कर दूंगा. आज इतने सालों बाद भी IAC Vikrant का ध्येय वाक्य भी यही है. यह ऋग्वेद से ली गई ऋचा (मंत्र) का हिस्सा है, जो इंद्र देवता को संबोधित करते हुए कहता है कि आपके विनाशकारी हथियार से जो ताकत मुझे मिली है, मैं उसी से जीतूंगा.
पुराने विक्रांत का पेनेंट नंबर R11 था, आज भी विक्रांत का नेमसेक R11 है, सबसे बड़ी बात ये है कि आज भी दोनों का नाम ‘विक्रांत’ है (यानी जिसे कोई युद्ध में पराजित न कर सके) यह शब्द संस्कृत का है, जिसका मतलब होता है बहादुर, जो हर परिस्थिति में डटा रहे. इसकी उत्पत्ति भगवद गीता के पहले अध्याय के छठे श्लोक में होती है, जिसमें पांडव के कुछ सेनानायकों की बहादुरी का भी ज़िक्र मिलता है. INS Vikrant को 36 साल सर्विस देने के बाद 15 सालों तक बतौर म्यूजियम मुंबई में इसे तैनात किया गया है, लोग उसकी क्षमताओं को देखते थे. इसके बाद साल 2004 में इसे कबाड़ में बदल दिया गया था.
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