नेहरू की मर्जी के खिलाफ इंदिरा से शादी, जानें कैसे मिला फिरोज को ‘गांधी’ सरनेम

साल 1930 का था जब देश में आजादी का आंदोलन जोर पकड़ रहा था, लेकिन उसी समय एक और कहानी भी लिखी जा रही थी—यह थी इंदिरा गांधी

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नेहरू की मर्जी के खिलाफ इंदिरा से शादी, जानें कैसे मिला फिरोज को ‘गांधी’ सरनेम

Anjali Singh

  • September 12, 2024 7:31 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 months ago

नई दिल्ली: साल 1930 का था जब देश में आजादी का आंदोलन जोर पकड़ रहा था, लेकिन उसी समय एक और कहानी भी लिखी जा रही थी—यह थी इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी की प्रेम कहानी। उस वक्त इंदिरा सिर्फ 16 साल की थीं जब फिरोज ने उन्हें शादी के लिए प्रपोज़ किया, लेकिन उनकी मां और इंदिरा ने इसे ठुकरा दिया, यह कहते हुए कि इंदिरा बहुत छोटी हैं। हालांकि, आगे चलकर यह प्रेम कहानी शादी तक पहुंची, मगर यह शादी जवाहरलाल नेहरू की मर्जी के खिलाफ हुई।

कौन थे फिरोज गांधी?

फिरोज जहांगीर गांधी, जिनका जन्म 12 सितंबर 1912 को एक पारसी परिवार में हुआ, एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, और पत्रकार थे। अपने पिता के निधन के बाद, वह अपनी मां के साथ इलाहाबाद आ गए थे। 1930 में फिरोज की मुलाकात कमला नेहरू और इंदिरा गांधी से हुई, जो एक धरने में शामिल थीं। यहीं से फिरोज और इंदिरा के बीच नजदीकियां बढ़ीं।

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शादी की कहानी

1933 में, फिरोज ने पहली बार इंदिरा को शादी के लिए प्रपोज़ किया, जिसे उन्होंने और उनकी मां ने ठुकरा दिया। लेकिन, फिरोज और नेहरू परिवार के बीच संबंध मजबूत होते गए, खासकर कमला नेहरू के साथ। इंग्लैंड में रहते हुए, इंदिरा और फिरोज की नजदीकियां और भी बढ़ीं। 1942 में, इंदिरा ने अपने पिता जवाहरलाल नेहरू की मर्जी के खिलाफ जाकर फिरोज से शादी कर ली। कहा जाता है कि शादी के बाद महात्मा गांधी ने ही फिरोज को “गांधी” सरनेम दिया था।

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साथ में जेल और राजनीतिक सफर

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, इंदिरा और फिरोज दोनों को जेल भी जाना पड़ा। हालांकि, शादी के बाद उनके बीच कुछ मनमुटाव भी हुआ, लेकिन इस बीच उनके दो बेटे, राजीव और संजय का जन्म हुआ। आजादी के बाद, फिरोज ने रायबरेली से चुनाव लड़ा और 1952 में सांसद बने। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ा और अपने ससुर जवाहरलाल नेहरू की सरकार की आलोचना भी की।

फिरोज गांधी का निधन

1957 में फिरोज गांधी दोबारा रायबरेली से सांसद चुने गए। 1958 में, उन्होंने संसद में हरिदास मूंदड़ा घोटाले का खुलासा किया, जिसके चलते तत्कालीन वित्त मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। उसी साल, फिरोज को दिल का दौरा पड़ा और 8 सितंबर 1960 को उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद, उनकी राख को इलाहाबाद के पारसी कब्रिस्तान में दफनाया गया

 

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