नई दिल्लीः 1969 में इंदिरा ने नई पार्टी कांग्रेस (R) बना ली और डीएमके व सीपीआई के सहयोग से अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार भी बचा तो ली लेकिन इंदिरा के लिए आगे की राह मुश्किल हो गई. एक तो बहुमत नहीं था, सरकार बैशाखियों पर टिकी थी. दूसरे प्रिवी पर्स खत्म होने से परेशान राजा महाराजा अपनी रियासतों में आक्रोश भड़का रहे थे, तीसरे बैंकों के नेशनलाइजेशन का मुद्दा रुपए के अवमूल्यन की तरह इंदिरा के गले की फांस बन गया था. इंदिरा के खिलाफ तमाम तरह की साजिशों की खबर उन्हें मिल रही थीं.
ऐसे माहौल में इंदिरा को लगा कि इन सबसे तभी निजात पाई जा सकती है, जब उनके पास पूरा बहुमत हो. तो इंदिरा अचानक 27 दिसम्बर, 1970 को राष्ट्रपति के पास पहुंची और लोकसभा भंग करके नए चुनाव करवाने की सलाह दी. हालांकि इंदिरा के पास अभी करीब दो साल का वक्त बाकी था. फरवरी में चुनाव होंगे, उनकी तारीखों का भी ऐलान हो गया. ये चुनाव पहली बार अकेली इंदिरा गांधी की अग्निपरीक्षा थे, ना कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं का साथ था, ना ही कांग्रेस पार्टी का साथ था और ना ही कांग्रेस का सिम्बल. इस बार उनकी पार्टी कांग्रेस (R) को गाय का दूध पीता बछड़ा सिम्बल दिया गया था. कांग्रेस का पुराना सिम्बल दो बैलों का जोड़ा इस बार साथ नहीं था. पूरे विपक्ष ने नया नारा दिया इंदिरा हटाओ.
जाहिर है इंदिरा को भी एक मारक नारा जवाब में लाना था. इंदिरा ने नारा दिया गरीबी हटाओ. इंदिरा का वो भाषण आज भी यूट्यूब पर मिल जाता है, जिसमे इंदिरा कह रही हैं, ‘वो कहते हैं कि इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ.’ उनके समर्थन में फोटो और गाय बछड़े के साथ एक बैनर बहुत लोकप्रिय हुआ था, ‘वोट फॉर काफ एंड काउ, फॉरगेट ऑल अदर्स नाउ.’ इंदिरा ने तीन सौ ताबड़तोड़ सभाएं की और 36,000 मील की दूरी तय की. वो काफी आक्रामक थीं. नतीजे भी जबरदस्त आए कांग्रेस (O) को केवल 10 फीसदी वोट और केवल 16 सीटें मिलीं, जबकि इंदिरा की कांग्रेस (R) को 43 फीसदी वोट और 352 यानी दो तिहाई बहुमत हासिल हुआ.
अगर आप देखना चाहते हैं मोदी के ट्वीट की तरह इंदिरा कैसे जनता तक अपनी बात पहुंचाती थीं, तो देखिए हमारा ये वीडियो शो विष्णु शर्मा के साथ.
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