नई दिल्लीः 1982 में मेनका के छोड़ जाने के बाद इंदिरा काफी परेशान रहने लगीं थीं, एक बार तो पूरे एक महीने तक वो नहीं सो पाईं, 2 या 3 बजे उनकी आंखें खुल जातीं औऱ फिर वो सो नहीं पातीं. दरअसल इंदिरा की आंखें खुलती थीं एक चुड़ैल जैसी किसी बुरी आत्मा को सपने में देखकर, जबकि एक सफेद दाढ़ी वाला व्यक्ति उन्हें सपने में ही उस चुडैंल से बचाने की कोशिश भी करता. जब इंदिरा फिर सोने की कोशिश करतीं, वो भयानक बुढिया या चुडैल फिर आ जाती और कुछ तांत्रिक क्रियाएं करना शुरू कर देतीं.
1979 में जब कई करीबियों ने ज्योतिषियों के हवाले से उन्हें बताया कि संजय की जान खतरे में है, तो उनकी सलाह पर इंदिरा ने झांसी के काली मंदिर में लक्ष्यचंडी पाथ के लिए हामी भर दी, इसमें यज्ञ के दौरान हजारों लाखों मंत्र पढ़े जाते हैं और ये करीब चार साल तक यानी 1983 तक पढ़े जाते रहे. 1980 में संजय की मौत के बाद भी ये चलता रहा और इंदिरा की मौत से ठीक एक साल पहले यानी 1983 में खत्म हुआ.
इंदिरा गांधी शक्ति और आंतरिक एनर्जी जैसे विषयों पर भी डिसकस किया करती थीं. एक बार वो त्रिपुरा की महारानी उन्हें त्रिपु सुंदरी के मंदिर में ले गईं. वहां इंदिरा को एक अनोखा अनुभव हुआ, जबकि उस वक्त मंदिर में राजा, रानी, पुजारी और उनके एक सहयोगी भी थे। इंदिरा को महसूस हुआ कि त्रिपु सुंदरी कोई मूर्ति नहीं है बल्कि वो जीवित बैठी हैं. मुझे लगा कि मुझे उनसे बात करनी चाहिए. उस रात इंदिरा को भयंकर एलर्जी भी हुई. वो कभी भी इस रहस्य को समझ नहीं पाईं, लेकिन करीबियों से इसका जिक्र भी किया. इंदिरा के सपने में चुड़ैल आना कैसे बंद हुई, किससे मिलीं इस समस्या को लेकर इंदिरा, जानने के लिए देखिए हमारा ये शो विष्णु शर्मा के साथ.
जानिए कब -कब रोईं इंदिरा गांधी?
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