नई दिल्लीः इमरजेंसी के दिनों की याद जितनी ज्यादा पब्लिक के मन में ताजी थी, उससे कई गुना ज्यादा विपक्षी पार्टियों के लोगों के दिलोदिमाग में हावी थी. हर कोई कुर्सी से उतर चुकी इंदिरा को कड़ा सबक सिखाने के मूड में था. ऐसे में इंदिरा के लिए खासा मुश्किल था, जहां भी जातीं, उनका विरोध नारों और काले झंड़ों से ही नहीं पत्थरों से भी होता. इंदिरा की भी मुश्किल थी, वो देश भर के लोगों से फिर से सम्वाद कायम करना चाहती थी, अपना खिसका हुआ वोट बैंक वापस लाना चाहती थीं. एक बार तो उन्हें ट्रेन में जिंदा जला देने की ही प्लानिंग हो गई थी.
एक बार जब वो आगरा पहुंची तो इंदिरा पर जबरदस्त पथराव हुआ. जेल से छूटकर घर आते वक्त दिल्ली में पथराव हुआ, मदुरई में ओपन कार में एयरपोर्ट से जाते वक्त पथराव हुआ. वो तो प्रभा राव दो तकिए लेकर गई थीं, जिससे इंदिरा बच गईं। इंदिरा जब भी खुली कार में बैठती थीं, तो अब वो दो तकिए लेकर चलने लगीं, ताकि पत्थर फेंकने जैसी हरकतों से चेहरे को बचाया जा सके. उसके बाद त्रिची में पथराव हुआ. वहां से इंदिरा मद्रास जाने वाली थीं, कि ट्रेन छूट गई, लोगों को पता ही नहीं चला कि इंदिरा उस ट्रेन में नहीं है, बाद में इंदिरा गांधी को जब ये पता चला कि उस ट्रेन में ही आग लगा दी गई थी तो वो सिहर उठीं.चिकमंगलूर में चुनावों के वक्त तो जॉर्ज फर्नींडीज उनके खिलाफ डेरा जमाकर बैठ गए थे, इंदिरा जहां भी जाएंगी विरोध करना है. ऐसे ही एक जगह इंदिरा को हो गई भारी मुश्किल और उन्हें नन बनकर मौके से निकल भागना पड़ा, क्या थी वो पूरी कहानी? जानने के लिए देखिए हमारा ये शो विष्णु शर्मा के साथ.
इंदिरा गांधी ने इस गुरू की सलाह पर खत्म की थी इमरजेंसी
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