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कैसे एक हाथी के जरिए इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी ने पलट दी चाल

अगस्त 1977 का महीना था, खबर आई कि बिहार के बेलछी में एक बड़ा नरसंहार हुआ है. कई हरिजन परिवारों को सवर्ण दबंगों ने आग में झोंक दिया, इंदिरा फौरन वहां के लिए निकल पड़ीं. प्लेन से पटना गईं और फिर वहां से कार से बिहार शरीफ पहुंची

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  • November 13, 2017 10:12 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली: अगस्त 1977 का महीना था, खबर आई कि बिहार के बेलछी में एक बड़ा नरसंहार हुआ है. कई हरिजन परिवारों को सवर्ण दबंगों ने आग में झोंक दिया, इंदिरा फौरन वहां के लिए निकल पड़ीं. प्लेन से पटना गईं और फिर वहां से कार से बिहार शरीफ पहुंची. बिहार शरीफ में भारी बारिश हो रही थी, बेलछी जाने से हर किसी ने रोका, लेकिन इंदिरा ने जिद पकड़ ली. शाम हो रही थी, ना नावें थीं और ना कोई और तरीका जिससे कि उफनती नदी पार हो जाए.

कांग्रेसियों ने बहुत समझाया कि आगे रास्ता एकदम कच्चा और पानी से लबालब है लेकिन वे पैदल ही चल पड़ीं, मजबूरन साथी नेताओं को उन्हें जीप में ले जाना पड़ा मगर जीप कीचड़ में फंस गई. फिर उन्हें ट्रैक्टर में बैठाया गया तो वह भी गारे में फंस गया. इंदिरा तब भी अपनी धोती थामकर पैदल ही चल दीं तो मोती नाम का एक हाथी मंगाया गया, हाथी के ऊपर हौदा भी नहीं था, केवल एक कम्बल हाथी की पीठ पर कसा हुआ था. बमुश्किल इंदिरा बैठीं और पीछे बिहार कांग्रेस नेता प्रतिभा सिंह बैठ गईं. इतने खराब मौसम में इंदिरा केवल महावत और एक महिला साथी के साथ साढ़े तीन घंटे तक बिना हौदे के हाथी पर सफर करती रहीं.

बेलची गांव के लोगों का इंदिरा ने दिल जीत लिया, लौटने तक केवल एक सेव ही खाया था इंदिरा ने. उनके इस दुस्साहस की बराबरी पक्ष-विपक्ष का कोई भी नेता नहीं कर पाया. बमुश्किल 500 बेहद गरीब लोगों का बेलछी गांव तब नरसंहार के कारण सुर्खियों में था. अगले दिन हाथी पर बैठीं इंदिरा की ये तस्वीर देश विदेश की मीडिया की सुर्खियां बन गईं. इंदिरा के कार्यकर्ताओं में फिर से विश्वास लौट आया. इंदिरा को लेकर लोगों के मन में जो गुस्सा था वो इस घटना से काफी हद तक दूर हो गया, रही सही कसर इंदिरा गांधी की दो गिरफ्तारियों और जनता सरकार की आपसी फूट ने कर दिया. कैसे हथकड़ी लगाने की जिद पकड़ ली इंदिरा गांधी ने? जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो विष्णु शर्मा के साथ.

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