इंदिरा गांधी ने 1966 मे जिस दिन पीएम पद की शपथ ली, उसी दिन भाभा की प्लेन एक्सीडेंट में रहस्यमयी मौत हो गई। तो इंदिरा ने उनके सहयोगी साइंटिस्ट राजा रमन्ना को कमान सोंपी
नई दिल्ली. डा. भाभा की अगुवाई में 1954 से ही भारत का शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम चल रहा था, अमेरिका जैसे देश भी मदद कर रहे थे, तारापुर और ट्राम्बे जैसी परियोजनाएं शुरू भी हो गई थीं। भाभा के रेडियो पर परमाणु बम की वकालत वाले भाषणों पर नेहरू भी मजबूर हो गए थे परमाणु बम योजना के बारे में सोचने पर, उनके दौर में काम भी शुरू हो गया था लेकिन हिचकते हिचकते। अगर 1962 तक प्रोजेक्ट पूरा हो जाता, तो शायद चीन से हार ना मिलती।
लेकिन युद्ध के समय नेहरू ने दिलचस्पी लेना बंद कर दिया, युद्ध के बाद तेजी आई लेकिन शास्त्रीजी के समय फिर फोकस बाकी चीजों की तरफ हो गया। इंदिरा गांधी ने 1966 मे जिस दिन पीएम पद की शपथ ली, उसी दिन भाभा की प्लेन एक्सीडेंट में रहस्यमयी मौत हो गई। तो इंदिरा ने उनके सहयोगी साइंटिस्ट राजा रमन्ना को कमान सोंपी। 1971 में जब इंदिरा ने रूसी परमाणु पनडुब्बी के खौफ से अमेरिका के सातवें बेड़े में खौफ देखा, तो तय कर लिया कि जल्द से जल्द अपना परमाणु हथियार बनाना है। 7 सितम्बर 1972 को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर को पहले परमाणु परीक्षण औऱ डिवाइस बनाने की जिम्मेदारी सोंपी। बार्क के डायरेक्टर थे राजा रमन्ना, । परमाणु बम के डिजाइनर थे पीके अयंगर,जबकि प्रोजेक्ट के सुपरवीजन की जिम्मेदारी दी गई एटॉमिक एनर्जी कमीशन ऑफ इंडिया के चेयरमेन होमी सेठना को।
18 मई 1974 को बुद्ध पूर्णिमा का दिन चुना गया, डिवाइस का नाम रखा गया स्माइलिंग बुद्धा, राजस्थान का पोखरन इस परमाणु परीक्षण के लिए चुना गया। गोपनीयता का आलम ये था कि विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह को चूंकि विदेशी गुस्से को झेलना था इसलिए 48 घंटे पहले बताया गया। सरकार में केवल इंदिरा के दो करीबी अधिकारियों डीपी धर और पीएन हक्सर को ही इस बारे में पहले से पता था। ये ऐसा गर्व का दिन था कि अगले कई दशकों यानी कारगिल युद्ध तक पाकिस्तान समेत किसी देश की हिम्मत नहीं हुई की भारत पर हमला करने की सोच भी सके।
इंदिरा सरकार में रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम को परमाणु परीक्षण के बारे में कब बताया गया, जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो विष्णु शर्मा के साथ