नई दिल्ली: भारत की सड़कों पर चलना जान हथेली पर लेकर चलने के जैसा है. सड़क हादसों में होने वाली मौतों के मामले में भारत दुनिया में पहले नबंर पर है. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़े बताते है कि पिछले दस साल सड़क हादसों में लगभग 15.3 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई है. […]
नई दिल्ली: भारत की सड़कों पर चलना जान हथेली पर लेकर चलने के जैसा है. सड़क हादसों में होने वाली मौतों के मामले में भारत दुनिया में पहले नबंर पर है. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़े बताते है कि पिछले दस साल सड़क हादसों में लगभग 15.3 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई है. ये चंडीगढ़ जैसे केंद्रशासित प्रदेश की कुल आबादी से भी अधिक है. इससे पहले वाले दशक के दौरान, देश में सड़क हादसों के वजह से 12.1 लाख की मौत दर्ज की गई थी.
भारत में प्रति 10 हजार किलोमीटर पर सड़क हादसें में जितने लोग भारत में जान गंवाते हैं, दूसरे देशों में उसका आधा भी नहीं. जारी आकड़ो से पता चलता है कि देश में सड़क हादसे में होने वाली मौतों की दर प्रति 10,000 किलोमीटर पर करीब 250 है. अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया चीन में ये आंकड़ा क्रमशः 57, 119 और 11 है.
केंद्र सरकार के डाटा के मुताबिक 2012 में कुल रजिस्टर्ड गाड़ियों की संख्या 15.9 करोड़ थी. वहीं अगले 11-12 साल में गाड़ियों की संख्या दोगुने से भी ज्यादा हो गई है. 2024 तक, सरकारी आंकड़ों में करीब 38.3 लाख गाड़ियां रजिस्टर्ड थीं. जिस हिसाब से गाड़िया बढ़ी उस अनुपात में सड़के नहीं बढ़ीं. 2012 में भारतीय सड़कों की कुल लंबाई 48.6 लाख किलोमीटर थी. वहीं 2019 तक लंबाई 63.3 लाख किलोमीटर तक पहुंची थी.
तमाम सड़क सुरक्षा उपायों के बावजूद देश में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है. एक्सपर्ट्स के अनुसार सड़कों की लंबाई और गाड़ियों की संख्या हर साल मौतें बढ़ने का कारण नहीं हो सकता है. सड़क हादसों को लेकर पुलिस की रवैये में बदलाव नही आना भी एक बड़ी वजह है.
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