नई दिल्ली: होमी व्यारावाला को भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार कहा जाता है। होमी अपने लोकप्रिय उपनाम “डालडा 13” से प्रसिद्ध हैं। वर्ष 1930 में बतौर छायाकार अपनी करियर शुरू करने के बाद होमी वर्ष 1970 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो गई। व्यारावाला को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों को देखते हुए साल 2011 में भारत […]
नई दिल्ली: होमी व्यारावाला को भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार कहा जाता है। होमी अपने लोकप्रिय उपनाम “डालडा 13” से प्रसिद्ध हैं। वर्ष 1930 में बतौर छायाकार अपनी करियर शुरू करने के बाद होमी वर्ष 1970 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो गई। व्यारावाला को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों को देखते हुए साल 2011 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
गूगल ने होमी की विरासत का सम्मान देते हुए उनके जन्म की 104वीं सालगिरह पर अपने ‘डूडल’ के साथ सम्मानित किया। गूगल ने भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार होमी व्यारावाला को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘लेंस के साथ प्रथम महिला’ के रूप में सम्मान दिया। इस डूडल का रेखांकन मुंबई के चित्रकार समीर कुलावूर ने किया।
होमी व्यारावाला का जन्म 09 दिसम्बर 1913 को गुजरात के नवसारी के एक मध्यवर्गीय पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता पारसी उर्दू थियेटर में एक अभिनेता थे। उनका पालन पोषण मुंबई शहर में हुआ, उन्होंने पहले फोटोग्राफी अपने मित्र मानेकशाॉ व्यारावाला से और उसके बाद में जे०जे० स्कूल ऑफ आर्ट से सीखी।
होमी पहली तस्वीर बॉम्बे क्रॉनिकल में प्रकाशित हुई जहां उन्हेें प्रत्येक छायाचित्र के लिए 1 रुपया मज़दूरी मिलता था। होमी व्यारावाला का विवाह टाइम्स ऑफ इंडिया में बतौर छायाकार काम करने वाले मानेकशाॉ जमशेतजी व्यारावाला के साथ हुआ। उसके बाद अपने पति के साथ दिल्ली आ गई और ब्रिटिश सूचना सेवा के कर्मचारी के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान फ़ोटो खिचने का काम शुरू कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने इलेस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इंडिया मैगजीन में कार्य शुरू किया जो 1970 तक चला। उनके कई फोटोग्राफ टाइम, लाइफ, दि ब्लैक स्टार तथा कई अन्य अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशनों में प्रकाशित हुए। अपने पति के निधन के बाद होमी दिल्ली छोड़कर वडोदरा आ गई।
वर्ष 1982 में अपने बेटे फारूख के पास राजस्थान के पिलानी में चली आई, जहां फारूख पिलानी के बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान में काम करते थे। लेकिन साल 1989 में कैंसर से बेटे की मौत के बाद होमी एक बार फिर अकेली हो गई। उसके बाद उन्होंने वडोदरा के एक छोटे से घर में जिंदगी बिताई।
दिल्ली आते ही होमी को अपने काम को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मुहम्मद अली जिन्ना की खीची गई उनकी कई तस्वीरें सुर्खियों में रहीं। उनके बाद छायांकन के प्रिय विषय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू रहे।
वर्ष 1970 में अपने पति की मृत्य के बाद होमी ने अचानक अपने पेशे से संन्यास ले लिया। इसकी वजह उन्होंने नई पीढ़ी के छायाकारों के बुरे बर्ताव कहा और उसके बाद में तकरीबन 40 वर्षों तक उन्होंने कैमरे से एक भी तस्वीर कैद नहीं की। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने करियर के उत्कर्ष पर छायांकन को क्यों छोड़ दी, तो उनका जवाब था कि नई पीढ़ी जिस प्रकार से पैसे कमाने के पीछे पड़ी थी। मैं उस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी।
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