देश-प्रदेश

भारतीय रेलवे जल्द ही लागू करेगा क्यूआर टिकट सिस्टम

नई दिल्ली:  भारतीय रेलवे देश के सबसे बड़े परिवहन नेटवर्क में से एक है। रेलवे हमेशा यात्रियों की सुविधा के लिए कई नई तकनीक अपनाने की दिशा में काम करता है। हालांकि, मेट्रो की तरह रेलवे स्टेशनों पर क्यूआर टिकट सिस्टम लागू करने में कुछ बड़ी चुनौतियां और कारण हैं। आइए आज इस पर विस्तार से बात करते हैं।

अलग-अलग ट्रेनों की समस्या

भारतीय रेलवे में मेट्रो के मुकाबले कई अलग-अलग तरह की ट्रेनें शामिल हैं। जैसे एक्सप्रेस, सुपरफास्ट, लोकल और पैंट्री कार वाली ट्रेनें। हर ट्रेन का किराया और टाइम टेबल अलग-अलग होता है। ऐसे में एक समान क्यूआर टिकट सिस्टम लागू करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। वहीं, मेट्रो में सीमित संख्या में स्टेशन और रूट होते हैं, जिससे वहां क्यूआर सिस्टम लागू करना आसान होता है।

अलग-अलग तरह के टिकटों की समस्या

रेलवे स्टेशनों पर टिकट खरीदने की प्रक्रिया में भी काफी समस्या होती है। उदाहरण के लिए, अलग-अलग यात्रियों को अलग-अलग तरह के टिकट खरीदने की जरूरत होती है। आसान शब्दों में कहें तो कुछ लोग तत्काल टिकट चाहते हैं, कुछ लोग स्लीपर टिकट चाहते हैं और कुछ लोग एसी फर्स्ट, सेकंड और थर्ड क्लास के टिकट चाहते हैं। ऐसे में अलग-अलग तरह की सीटों के लिए क्यूआर सिस्टम लागू करना मुश्किल होगा। मेट्रो में सभी को एक ही तरह का टिकट दिया जाता है।

यात्रियों की भारी संख्या भी चुनौती

मेट्रो में यात्रियों और स्टेशनों की संख्या कम है, जबकि रेलवे में यात्रियों और स्टेशनों की संख्या बहुत ज़्यादा है। ऐसे में भारतीय रेलवे में क्यूआर टिकट सिस्टम को लागू करना आसान नहीं होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि यह सुनिश्चित करना कि यात्री क्यूआर कोड में धोखाधड़ी न करें, रेलवे के लिए एक बड़ी चुनौती है।

इसमें बहुत ज़्यादा खर्च आएगा

अकेले दिल्ली मेट्रो की बात करें तो यहां क्यूआर सिस्टम लाने में करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं। अब सोचिए कि रेलवे देश भर में किस हद तक फैली हुई है। ऐसे में हर रेलवे स्टेशन पर क्यूआर टिकट सिस्टम लागू करने के लिए कितने हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं। यही वजह है कि फिलहाल देश के हर रेलवे स्टेशन पर क्यूआर टिकट सिस्टम लागू करना मुश्किल है।

 

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Manisha Shukla

पत्रकार हूं, खबरों को सरल भाषा में लिखने की समझ हैं। हर विषय को जानने के लिए उत्सुक हूं।

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