बंगलुरुः भारत में संचालित फैक्ट्रियों का उत्पादन और उनसे जुड़ी कारोबारी गतिविधियां बीते 5 वर्षों में अपने चरम पर हैं. मंगलवार को इस संबंध में एक निजी सर्वे रिपोर्ट में दिसंबर 2017 तक के आंकड़ों का जिक्र किया गया है. उत्पादन में बढ़ोतरी और नए ऑर्डर से उत्साहित होने की वजह से कंपनियों ने कीमतें बढ़ाने की इजाजत दी है. मंगलवार को जो सर्वे रिपोर्ट सामने आई है उसके अनुसार भारतीय कंपनियों का मानना है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में कारोबार पहले जैसी सफलता हासिल करने की ओर आगे बढ़ रहा है. लेकिन रिपोर्ट में कारोबार के जोखिमों पर यह भी कहा गया है कि बढ़ती कीमतों के दबाव में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को ब्याज दरों में कटौती से आगे बढ़ना होगा.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, द निक्केई मैन्युफैक्चरिंग परचेसिंग मैनेजर इंडेक्स, (INPMI) जो ECI के बराबर है, IHS बाजार द्वारा संकलित यह सूची नवंबर के 52.6 से दिसंबर में 54.7 पर पहुंच गया है, जो सीधे पांचवें महीने में 50 स्तर से ऊपर है. यह संकुचन से विस्तार को अलग करता है. IHS मार्केट से इकॉनामिस्ट कहते हैं कि साल 2012 से भारत माल-उत्पादक अर्थव्यवस्था में परिचालन की स्थिति बेहतर करते हुए तेजी से अपनी खोई हुई जगह पाने की ओर अग्रसर है. दिसंबर 2012 से लेकर अक्टूबर 2016 तक क्रमशः भारतीय फैक्ट्रियों में प्रोडक्शन और नए ऑर्डर में सबसे तेजी से विस्तार के कारण मजबूत व्यापार प्रदर्शन के लिए खासा दबाव डाला गया था, जिससे उत्पादन की क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिले.
हमारे देश के उत्पादों की भारतीय और विदेशी बाजारों में उत्पादन की बढ़ती मांग मजबूत बाजार की ओर इशारा करती है. देश का विनिर्माण क्षेत्र दिसंबर, 2017 तक सर्वाधिक वेतन के आंकड़ों का गवाह है जबकि नई नौकरी पैदा करने की दर भी अगस्त 2012 के मुकाबले उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. इस नए सर्वे में नए उप-सूचकांक, घरेलू मांग के सूचकांक भी अक्टूबर 2016 की अपेक्षा में दिसंबर 2017 में 56.8 की दर से उच्चतम स्तर पर है. बीते साल जून से विदेशी बाजार में भी भारतीयों उत्पादों की मांग बढ़ी है. हालांकि अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि अभी चुनौतियां समाप्त नहीं हुई हैं लेकिन यह सर्वे इतिहास के मुकाबले भारतीय कारोबार और नौकरियों के सुधार की दिशा में मजबूत स्थिति दर्शाता है.
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अगले 12 महीनों में बाजार की परिस्थितियों में अपेक्षित सुधारों के बीच तीन माह (जो कारोबार के क्षेत्र में काफी सफल रहे) के कारोबार के कारण इस दृष्टिकोण को उत्पादन क्षेत्र से जुड़े लोगों ने साझा किया. वहीं उत्पादों की मांग ज्यादा होने की वजह से कीमतों में इजाफा कर दिया गया. यह बढ़ोतरी बीते 10 माह के शीर्ष पर है. बढ़ती मांग की वजह से समुचित महंगाई दर आने वाले महीनों में केंद्रीय बैंक के मध्यम अवधि के लक्ष्य के मुकाबले 4 प्रतिशत रह सकती है. बीते नवंबर माह में भारतीय बाजारों में बढ़ी महंगाई दर ने सेंट्रल बैंक के मध्यम अवधि के लक्ष्य का उल्लंघन किया, जिसकी वजह से आने वाले महीनों में पॉलिसी दरों को बढ़ाने के लिए बैंक पर दबाव पड़ सकता है. बीते दिसंबर माह में आरबीआई की मीटिंग में सदस्य बैंक महंगाई दर को लेकर ज्यादा चिंतित नजर आए.
क्या होता है परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI)
बिजनेस और मैन्यूफैक्चरिंग माहौल का पता लगाने के लिए अक्सर परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) का सहारा लिया जाता है. इस क्षेत्र में एचएसबीसी परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स सर्वाधिक सर्वमान्य इंडेक्स बताया जाता है. वर्तमान में निजी सर्वे रिपोर्ट में जो PMI आंकड़े दिए हैं, इसका मतलब है कि देश में कारोबारी माहौल ठीक है. PMI हर महीने जारी होता है जो कारोबार की ऑपेरशनल एक्टिविटी को जाहिर करता है. प्राइवेट कंपनियों के बीच इस संबंध में सर्वे कराया जाता है और इस रिपोर्ट के आधार पर ही परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स बनता है. देश और दुनिया में अलग-अलग सेक्टरों के बारे में PMI जारी किए जाते हैं. बताते चलें कि भारत में सर्विस PMI में 6 उद्योगों को शामिल किया जाता है, जिसमें- ट्रांसपोर्ट और कम्यूनिकेशन, फाइनेंशियल इंटरमीडिएशन, बिजनेस सर्विसेज, पर्सनल सर्विसेज, कंप्यूटिंग एंड आईटी और होटल्स और रेस्टोरेंट शामिल हैं. PMI के आंकलन के लिए इन इंडस्ट्री से जुड़े कंपनियों के प्रबंधकों को सर्वे से जुड़े सवाल भेजे जाते हैं. कंपनी को देखते हुए इनके जवाबों को तवज्जो दी जाती है. यह जवाब फीसदी में होते हैं. इन सवालों के जवाब से यह पता लगाया जाता है कि इंडस्ट्री की हालत सामान्य है, खराब है या अच्छी है.
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