बालकृष्ण उपाध्याय Election 2022 नई दिल्ली. Election 2022 आज के समय में किसी भी पार्टी की कोई राजनीतिक विचारधाराएं नहीं बची है सब अपने रास्ते से भटक चुके हैं सब अपनी राजनीतिक विचारधाराओं और अपने आदर्शों से समझौता कर बैठे हैं । चारों तरफ खलबली मची हुई है सभी पार्टियां तोड़ फोड़ और खरीद-फरोख्त में […]
नई दिल्ली. Election 2022 आज के समय में किसी भी पार्टी की कोई राजनीतिक विचारधाराएं नहीं बची है सब अपने रास्ते से भटक चुके हैं सब अपनी राजनीतिक विचारधाराओं और अपने आदर्शों से समझौता कर बैठे हैं । चारों तरफ खलबली मची हुई है सभी पार्टियां तोड़ फोड़ और खरीद-फरोख्त में लगी हुई है l हर बड़े नेता अपने बच्चों के टिकट के लिए अड़े हुए हैं और जिनका कोई जनाधार नहीं है ऐसे नेता अपनी अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं l चाहे जिस स्तर तक नीचे गिरना पड़े गिरने को तैयार हैं, अगर ईमान बेचना पड़े तो बेचो, जाति, धर्म, संप्रदाय में झगड़ा कराना पड़े तो झगड़ा करवाओ, दंगा भड़काना पड़े तो भड़काओ, आपस में लड़वना पड़े तो लड़वाओ लेकिन कुर्सी बची रहनी चाहिए l
आज के समय में हर एक दल के नेता सत्ता प्राप्ति के लालच में अपनी पार्टी की विचारधाराओं से समझौते कर रहे हैं l सभी ने अपनी पार्टी की विचारधारा के साथ कार्य करना छोड़ दिया है जब दूसरे दल का नेता दल बदल कर आपके दल में आता है तो उसका जोर शोर से स्वागत किया जाता है उसकी अच्छाइयों का बखान करने में पार्टी के सभी प्रवक्ता पूरी ताकत के साथ लग जाते हैं उसके आने से पार्टी को कितना लाभ होगा सभी गिनाने लगते हैं और ऐसा प्रस्तुतीकरण करते हैं जैसे नेता के आने से सारे समीकरण बदल गए हो और बहुत बड़ा चमत्कार होने वाला हो l इसी प्रकार जब कोई नेता दल छोड़कर जाता है तो पहले तो पार्टी के सारे लोग समझाने का प्रयास करते हैं और फिर भी नहीं समझता है तो उसके बारे में पार्टी के प्रवक्ता इस प्रकार से बोलना शुरू करते हैं जैसे उससे खराब नेता किसी भी दल में नहीं है और उसको दल बदलू, सत्ता का लालची, मौकापरस्त आदि नामों से संबोधित किया जाता है l
इस प्रकार सभी दलों में विचारधाराओं से समझौते करने की होड़ लगी है सभी दल अपनी विचारधाराओं से समझौते कर दूसरे दलों के लोगों को तोड़कर लाने और अपने दल में शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं जो जितने ज्यादा दूसरे दलों के लोगों को अपनी पार्टी में मिलाएगा वह आज के समय में सबसे बड़ा राजनीति का चाणक्य कहलायेगा एक कवि ने कविता में क्या खूब पंक्तियां कही है कि……..
तन बिक चुका है, मन बिक चुका है, कुर्सी के खातिर धरम बिक रहा है l
दुनिया के मालिक जरा आंख खोलो, लंगोटी से ज्यादा कफन बिक रहा है ll
आज दूसरे दल से आने की व अपने दल को छोड़कर दूसरे दल में जाने की बड़ी होड़ सी लगी है l आज के समय में सांप नेवले की, चूहे बिल्ली की, शेर गीदड़ की आपस में बड़ी गहरी दोस्ती दिखाई दे रही है और दूसरी तरफ लैला से मजनू का तोते से मैना का और पति से पत्नी का गहरा झगड़ा दिखाई दे रहा है दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं क्योंकि उन्होंने तो अपनी विचारधारा से समझौता कर लिया है और विचारधारा के विपरीत कार्य कर रहे हैं l ऐसे में किसी भी दल को और किसी भी नेता को कोई नुकसान नहीं हो रहा है अगर नुकसान किसी का हो रहा है तो वह मेरे देश के मतदाताओं और पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को हो रहा है
आज के समय में पार्टी समर्पित कार्यकर्ताओं व मतदाताओं के मन में दुविधा का भाव है वह किस विचारधारा का समर्थन करें और किस व्यक्ति का विरोध करें स्थिति ऐसी बनी हुई है की आज जिस नेता का विरोध कर रहे वह कल हमारी पार्टी में हमारा नेता कहलाएगा और जिस नेता का समर्थन कर रहे हैं वो कल विपक्ष पार्टी में दिखाई देगा ऐसी स्थिति में अब निर्णय मतदाताओं और समर्पित कार्यकर्ताओं के हाथों में है कि मतदाता किस नेता को वोट करें और समर्पित कार्यकर्ता किस विचारधारा का समर्थन करें इस बार जनता और समर्पित कार्यकर्ता मिलकर निश्चय करें कि जो पार्टी विचारधारा से विपरीत व्यक्ति को लाकर टिकट देगी उसका पूरी तरह से विरोध किया जाएगा और उसे पूरी तरह से नकार दिया जायेगा क्योंकि नेता तो अपनी कुर्सी के लालच में अपनी विचारधारा से समझौता कर बैठे हैं ऐसे में मतदाता और पार्टी समर्पित कार्यकर्ता अपनी विचारधारा से समझौता क्यों करें ? इस तरह से इस बार सब मिलकर उन सभी पार्टी को व दल बदलने वाले नेताओं को सबक सिखाने के लिए अपनी कमर कस लें और उन्हें पूरी तरह नकार दें ताकि उनकी आने वाली सात पीढ़ी दल बदलने की या फिर पार्टी विचारधारा से समझौता करने की कोशिश न करें
तब जाकर हर एक पार्टी अपने समर्पित कार्यकर्ताओं का सम्मान करेगी और हर मतदाता को अच्छे व्यक्ति को चुनने का मौका मिलेगा दूसरे दल से एक नेता को लाने में जितना धन और समय खर्च होता है उतने समय में पार्टी चाहे तो अपनी विचारधारा के 10 नेता खड़े कर सकती हैं दल बदलने वाले नेता बाहर से आते है और सत्ता का सुख भोग कर वापस भाग जाते है लेकिन पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता कल भी पार्टी के साथ थे, आज भी पार्टी के साथ है और आगे भी पार्टी के साथ ही रहेंगे क्योंकि जो व्यक्ति किसी विचारधारा से एक बार जुड़ जाता है उसका टूटना बहुत मुश्किल हो जाता है